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* आत्मीय स्फुरण
साध्वी श्री प्रियलताश्रीजी का शोध प्रबन्ध "जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा” एक महत्वपूर्ण कृति है । आपश्री ने अनेक विध कार्यों में व्यस्त होते हुये भी इस शोध-ग्रंथ का निर्माण कर जिनशासन की शान बढ़ायी है, इसलिए हमें आप पर नाज है । प्रसंगानुसार इसमें श्रावक एवं मुनि वर्ग की सामान्य साधना का भी चित्रण कर अपनी व्यापक अध्ययन दृष्टि का परिचय दिया है।
प्रस्तुत कृति सर्वांगीण क्षेत्र में अतीव उपयोगी रहेगी। नि:संदेह ऐसे सामाजिक, वैचारिक, व्यवहारिक विषमताओं के बारूद पर खड़े मानव समाज के लिए सर्वोपयोगी सिद्ध होगी। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि आत्म साधना से सम्बन्धित शोध ग्रन्थ का लेखन कर साध्वी श्री प्रियलताश्रीजी ने पीएच. डी. की उपाधि प्राप्त की।
इस शोध ग्रंथ के प्रकाशन के शुभ अवसर पर हमारे गोलच्छा परिवार की ओर से हार्दिक बधाई । इसी तरह आप दिन दूनी रात चौगुनी साहित्य क्षेत्र में अभिवृद्धि करें एवं जिनशासन में चार चाँद लगाये ।
प्रवीण / मनीष गोलच्छा एवं समस्त गोलच्छा परिवार
रायपुर
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