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________________ औपनिषदिक, बौद्ध एवं जैन साहित्य में आत्मा की अवस्थाएँ यशोविजयजी अपने ग्रन्थ योगावतार द्वात्रिंशिका में न केवल त्रिविध आत्मा का उल्लेख करते हैं, अपितु उन्होंने इस त्रिविध आत्मा की अवधारणा को चौदह गुणस्थानों की अवधारणा के साथ घटित भी किया है । उधर दिगम्बर परम्परा में आचार्य कुन्दकुन्द, देवनन्दी, योगीन्दुदेव, शुभचन्द्र आदि के पश्चात् पण्डित आशाधर" ने अपने ग्रन्थ अध्यात्मरहस्य में त्रिविध आत्मा की अवधारणा का उल्लेख किया है । पण्डित आशाधर का काल तेरहवीं शताब्दी के लगभग माना जाता है । इनके अतिरिक्त देवसेन ने अपने ग्रन्थ ज्ञानसार तथा ब्रह्मदेव ने द्रव्यसंग्रह की टीका में भी त्रिविध आत्माओं का उल्लेख किया है । हिन्दी कवियों में दिगम्बर परम्परा में धानतराय ने धर्मविलास में, भैया भगवतीदास" ने ब्रह्मविलास में, मुनि रामसिंह ने पाहुडदोहा में एवं बनारसीदास ने समयसार नाटक में४३ त्रिविध आत्मा का उल्लेख किया है। इस प्रकार हम देखते हैं कि दिगम्बर परम्परा में पांचवी - छठी शताब्दी से लेकर अठारहवीं शताब्दी तक त्रिविध आत्माओं की अवधारणा की चर्चा होती रही । जहाँ तक श्वेताम्बर परम्परा का प्रश्न है; उसमें १२वीं शताब्दी से लेकर १८वीं शती तक त्रिविध आत्मा की चर्चा मिलती है । श्वेताम्बर परम्परा में त्रिविध आत्मा की चर्चा करने वालों में सर्वप्रथम आचार्य हेमचन्द्र (बारहवीं सदी) का क्रम आता है। उनके पश्चात् आध्यात्मिक सन्त आनन्दघनजी, उपाध्याय यशोविजयजी और देवचन्द्रजी" प्रमुख हैं । इस तुलनात्मक अध्ययन में हम यह देखते हैं कि त्रिविध आत्मा की यह अवधारणा दिगम्बर ३६ 'बाह्यात्मा चान्तरात्मा च परमात्मेति च त्रयः । ३७ ३८ अध्यात्मरहस्य, ४-५ । ज्ञानसार गा. २६ । ३६ द्रव्यसंग्रह गा. १४ । ४० धर्मविलास अध्यात्मपंचासिका ४१ । MM 5 5 30 ४१ ४२ कायाधिष्ठायक ध्येयाः प्रसिद्धा योग वाङ्मये ।। १७ ।। ' ४४ ब्रह्मविलास परमात्मछत्तीसी २ । पाहुडदोहा ८४-८७ । ४३ समयसार नाटक, मोक्षद्वार ११ ( बन्धद्वार, साध्य सिद्धिद्वार ) । देवचन्द्र चौबीसी, ध्यान दीपिका - चतुष्पदी ४ / ८ /७,१०२ । Jain Education International १५१ For Private & Personal Use Only - योगावतार द्वात्रिंशिका | -देवचन्द्रजी । www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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