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________________ औपनिषदिक, बौद्ध एवं जैन साहित्य में आत्मा की अवस्थाएँ कठोपनिषद् में आध्यात्मिक विकास की दृष्टि से आत्मा की तीन अवस्थाओं का उल्लेख मिलता है : किन्तु ये तीनों अवस्थाएँ आत्मा की ज्ञानशक्ति की अपेक्षा से ही मानी जाती हैं । यहाँ ज्ञानात्मा के रूप में उस आत्मा का चित्रण किया गया है जो इन्द्रियादि के माध्यम से उनके विषयों का ग्रहणकर उन्हें जानती है । महदात्मा वस्तुतः बौद्धिक आत्मा है और शान्तात्मा शुद्धात्मा या मुक्तात्मा है। वैसे आत्मा की इन तीन अवस्थाओं का सम्बन्ध बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा के साथ इस रूप में माना जा सकता है कि ज्ञानात्मा बहिरात्मा, महदात्मा अन्तरात्मा एवं शान्तात्मा परमात्मा है । छान्दोग्योपनिषद्' के आधार पर डायसन ने आत्मा की तीन अवस्थाओं का चित्रण किया है : (१) शरीरात्मा; (२) जीवात्मा; और (३) परमात्मा । वस्तुतः यहाँ शरीरात्मा से यह तात्पर्य उस आत्मा से है जो शरीर को ही आत्मा मानती है । यह वस्तुतः बहिरात्मा का ही रूप है । जीवात्मा अन्तरात्मा की परिचायक है और परमात्मा को जैनदर्शन के परमात्मा के ही समान माना जा सकता है 1 सिद्धान्ततः औपनिषदिक और जैन चिन्तन में परमात्मा के स्वरूप को लेकर किंचित् मतभेद है। यहाँ हम केवल सामान्य तुलनात्मक दृष्टि से ही विचार कर रहे हैं । ४ (१) ज्ञानात्मा; (२) महदात्मा; और (३) शान्तात्मा । तैत्तिरीयोपनिषद्' में आध्यात्मिक विकास की दृष्टि से पंचकोषों की चर्चा मिलती है। ये पंचकोश निम्न हैं : ५ ६ (१) अन्नमयकोश; (३) मनोमयकोश; (५) आनन्दमयकोश | ' यच्छेद्वाङ्मनसी प्राज्ञस्तद्यच्छेज्ज्ञान आत्मनि । ज्ञानमात्मनि महति नियच्छेत्तद्यच्छेच्छान्त आत्मनि ।' १२६ Jain Education International (२) प्राणमयकोश; (४) विज्ञानमयकोश; और छान्दोग्योपनिषद् ३०८, ७-१२ (उद्धृत परमात्मप्रकाश प्रस्तावना पृ. १०७ ) । तैत्तिरीयोपनिशद् ३/१० । For Private & Personal Use Only - कठोपनिषद् १३ । www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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