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* आशीर्वचन *
स्नेही मानस तत्त्वज्ञ चिन्तिका, मेरी प्रिय बहना साध्वी प्रियलताश्री ने कई रिक्त जीवनों को ऋद्धि-सिद्धि से भरा है। कई सूने भाग्य उपवनों में वसंत खिलाया है और निराशों के जीवन में आशा का अरूणोदय किया है।
आगम मर्मज्ञ धार्मिक श्रद्धाशील प्रबुद्ध चिन्तक डॉ. सागरमलजी जैन के दुर्लभ सान्निध्य में अनुशीलन, परिशीलन किया सोने में सुहाग की तरह आत्म चिन्तन से शोध प्रबन्ध का लेखन प्रारंभ हुआ।
छोटी उम्र में ही बड़ी निष्ठा के साथ अध्ययन किया है, प्रज्ञावंत है। आत्मदर्शन, परमात्म दर्शन, बाह्य आत्म दर्शन उसका स्वयं का जीवन दर्शन बने। साधना पथ में निमग्न हो। संयम यात्रा खुशियों के साथ पार करें। रत्नत्रय की वृद्धि करते हुए आत्मा को दीप्तिमान बनावे, जिनशासन को गौरवान्वित करें। इनका उत्तरोत्तर विकास होता रहे,वे अपना श्रम साहित्य सर्जन में लगाती रहें और भविष्य में उत्तरोत्तर वृद्धि करें। यही अन्तर शुभाशीष है, आत्म कलम की सौरभ से आत्मा को सुरभित करके मुक्ति में रमणता करें, यही अन्तर कामना।
दीपक क्या कहता है सुनलो ! मुझे करो तुम स्नेह प्रदान। ज्योति जगा दूंगा अब जग में, बिना स्नेहामृत तन मन प्राण। प्रभु से मिल सकती है आस्था की ज्योति खुदा से मिल सकता है विश्वास का मोती मन की भाव शुद्ध से काया निर्मल बनती अध्यात्म ज्योति से मुक्ति को वरण करती।
साध्वी सुलक्षणाश्री
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