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* मंगल संदेश *
माँ शारदा के चरणों में समय, शक्ति और ज्ञान का अर्ध्य अर्पण करने वाली साध्वी डॉ. प्रियलताश्रीजी सादर सुख साता।
आपके प्रयत्न से अनुसंहित हुए ग्रंथ 'जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा' में आपने जो अपनी लेखनी चलाई है वह बहिर्मुखी आत्मा का अंतरात्मा बनाकर परमात्मा की ओर अग्रसर कराने वाली है।
आपका यह भगीरथ कार्य अत्यंत ही श्लाघनीय है। आपके द्वारा ऐसे ही अनेक विध शासन कार्य होते रहें, इन्हीं मंगल कामनाओं के साथ...
खरतरगच्छाधिपति आचार्य जिन कैलाश सागर सूरि
* शुभ संदेश*
निश्चय दृष्टि से आत्मा आत्मा में कोई भेद नहीं है। पर व्यवहार दृष्टि से शास्त्रकारों ने तीन भेद बताये हैं - 1. बहिरात्मा; 2. अन्तरात्मा; 3. परमात्मा।
शरीर को बहिरात्मा कहा। कर्म युक्त आत्मा का अन्तरात्मा जबकि कर्म-मुक्त शुद्ध आत्मा को परमात्मा कहा। इसे अन्य परिभाषा भी दी जा सकती है। शरीर से जुडी आत्मा बहिरात्मा है। अपने स्वरूप के बोध से जुडी आत्मा अन्तरात्मा है और अपने स्वरूप को प्राप्त आत्मा परमात्मा है। __ यह उत्क्रान्ति का क्रम भी है। हम अभी बहिरात्मा में जी रहे हैं। इससे ऊपर उठना है। अपने आत्म-स्वरूप से जुड़कर जीने का पुरुषार्थ हमें अगले पायदान तक पहुँचाता है, और उसी पुरुषार्थ में जब सातत्य आता है तो परमात्मा की मंजिल प्राप्त हो जाती है।
इस अनूठे और उपयोगी विषय पर अपने चिंतन को प्रस्तुत किया है - साध्वी प्रियलताश्रीजी ने। मुझे आशा है यह शोध प्रबन्ध आत्म-यात्रा के यात्रियों को नई दिशा देगा। उनके लिये उपयोगी बनेगा। साध्वीश्री साहित्य के क्षेत्र में नित नये आयाम स्थापित करें, यही शुभकामना।
उपाध्याय मणिप्रभसागर
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