SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विषयानुक्रमणिका चतुर्णिकाय देवोंके भवनोंमें क्रमशः शंखनाद, भेरीनाद, सिंहनाद और घण्टा नाद हुए । इन्द्रका आसन कम्पित हुआ जिससे जिनेन्द्र भगवानके जन्मका निश्चयकर वह जन्माभिषेकके लिए समस्त देवोंके साथ अयोध्या आया । ६८-८१ १६९-१७४ इन्द्रने इन्द्राणीको प्रसूतिगृहमें भेजा। वहाँ जिनबालक सहित माताको देखकर वह कृतकृत्य हो गयी। माताको मायामयी निद्रामें सुलाकर तथा उनके पास एक कृत्रिम बालक रखकर वह जिनबालकको ले आयी। इन्द्र उस बालकको लेकर ऐरावत हाथीपर सवार हआ तथा देवसेनाके साथ सुमेरु पर्वतको ओर चला । ८२-९६ १७४-१८१ सौधर्मेन्द्र द्वारा सुमेरुपर्वतका वर्णन। पाण्डुकवनमें पाण्डुक शिलापर इन्द्रने जिनबालकको पूर्वाभिमुख विराजमान किया। ९७-११० १८१-१८७ पंचम स्तबक सौधर्मेन्द्रने समस्त देवोंको अभिषेकके कार्यमें नियोजित किया। जिनबालकके वाम और दक्षिण भागमें स्थित आसनोंपर सौधर्म और ऐशान इन्द्र आरूढ हुए। १८८-१८९ 'भगवान्के शरीरका स्पर्श करने के लिए क्षीर सागरका जल ही योग्य है' ऐसा विचारकर उसका जल लानेके लिए आकाशमें देवोंकी दो पंक्तियाँ खड़ी हो गयीं। सुवर्ण-कलश उनके हाथमें थे। क्षीर समुद्रकी शोभाका वर्णन । ४-८ १८९-१९३ समुद्रसे भरकर लाये हुए कलशोंसे जिनबालकका अभिषेक हुआ। भगवान्पर पड़ती हुई जलधाराकी शोभाका वर्णन । देवोंने भक्ति-भावसे अभिषेक सम्पन्न किया। देवोंमें जय-जयकारका भारी कोलाहल उत्पन्न हुआ। ९-१६ १९३-२०० १७-२४ २०१-२०४ अभिषेकका जल सुमेरुको व्याप्त करता हुआ समस्त भूभागमें व्याप्त हो गया। तारामण्डलमें अभिषेक जलकी शोभाका वर्णन । शुद्ध जलका अभिषेक समाप्त होनेपर सुगन्धित जलसे भगवान्का अभिषेक हुआ । इन्द्राणीने भगवान्के अंगको पोंछ कर आभूषण पहनाये। इन्द्रने आभूषणोंसे विभूषित जिनबालककी सारगर्भित शब्दोंमें स्तुति की। पश्चात् देवसेनाके साथ वापस आकर इन्द्रने माता-पिताके लिए जिनबालकको सौंपा। पुत्रका मुखचन्द्र देखकर माता-पिताका हर्षसागर हिलोरें लेने लगा। २५-३१ २०४-२०६ नाभि राजाने पुत्रजन्मका उत्सव किया। इन्द्रने ताण्डव नृत्य कर सबको आश्चर्यमें डाल दिया। इन्द्रका नृत्य देखकर राजा नाभिराज मरुदेवीके साथ आश्चर्यको प्राप्त हुए । इन्द्रने भगवान्का वृषभदेव नाम रखा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001712
Book TitlePurudev Champoo Prabandh
Original Sutra AuthorArhaddas
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages476
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy