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________________ भारतीय संस्कृति में ध्यान परम्परा आगे नहीं बढ़ता। ज्योंही अँधेरा मिट जाता है, प्रकाश हो जाता है उसे साफ-साफ यह दिखाई देने लगता है कि वह तो भ्रमवश रस्सी को साँप समझ रहा था। वह झट से आगे बढ़ जाता है। यही बात जीव के लिए है। जिस प्रकार रज्जु में सर्प की भ्रान्ति मिट जाने पर पथिक आगे की ओर बढ़ने लगता है उसी प्रकार अविद्या, अज्ञान के मिटने पर जीव का अपने को ब्रह्म से भिन्न मानने का भ्रम दूर हो जाता है और वह उस ओर बढ़ने लगता है । ऐसा कहा जाता है कि जहाँ व्यक्ति को किसी विषय का यथार्थ बोध हो जाता है तो अनिवार्यतः उसकी क्रिया तदनुरूप बन जाती है, अन्यथा वह ज्ञान केवल कथन या भाषा तक ही सीमित होता है, अन्तरात्मा को नहीं छूता है । जो आत्मा को, आत्मिक विकास को, आध्यात्मिक सुख को परम श्रेयस्कर जाने, माने, पर यदि उसके दैनंदिन क्रियाकलाप में भौतिक सुख-समृद्धि की वांछनीयता का उद्यम दिखाई दे तो उसका आध्यात्मिक ज्ञान कथनी से आगे नहीं जाता। ज्ञान की सार्थकता इसी में है कि वह क्रियान्वित भी हो । अतः उससे भी एक साधना विधि का विकास हुआ। W वैदिक परम्परा में ध्यान विधि खण्ड : प्रथम श्रमण परम्परा की ध्यान साधना विधि से वैदिक परम्परा भी अप्रभावित नहीं रही। डॉ. सागरमल जैन आदि कुछ विद्वानों का तो यहाँ तक मानना है कि जिस परम्परा का मूल उत्स उपनिषदों में है वे उपनिषद् मूलतः श्रमण परम्परा के ही ग्रन्थ हैं और श्रमण और वैदिक परम्परा के अधिकाधिक समन्वित रूप हैं । कठोपनिषद् में कहा गया है कि यह आत्मा सत्य, तप, सम्यक् ज्ञान और ब्रह्मचर्य से प्राप्त होती है। इस शरीर के अन्तर्गत जो ज्योतिर्मय शुद्ध आत्म तत्त्व रहा हुआ है उसको क्षीणदोष अर्थात् - विकल्प और वासनाओं से रहित चित्त वाले यतिगण प्राप्त करते हैं। सत्येन तपसा लभ्यश्च एष आत्मा सम्यग्ज्ञानेन ब्रह्मचर्येण नित्यं, अन्तः शरीरे ज्योतिर्मयो हि शुभ्रो यं पश्यन्ति यतयः क्षीणदोषाः । इस प्रकार उपनिषद् काल से ही हिन्दू परम्परा में जिस साधनाविधि का विकास हुआ वह किसी न किसी रूप में श्रमणधारा से प्रभावित है। भारतीय श्रमण धारा 24 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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