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________________ खण्ड : प्रथम जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम तत्त्वदर्शन में मतभेद उत्पन्न होने के फलस्वरूप अनेक दृष्टियों का प्रादुर्भाव हुआ। बौद्ध दर्शन में इन सभी दृष्टियों का संकलन बासठ प्रकार की मिथ्यादृष्टियों (मिच्छादिट्ठि) के रूप में किया गया है। जैन साहित्य में इनकी संख्या 363 बताई गयी है। ठाणांग सूत्र में श्रमणों के पाँच भेद निर्दिष्ट हैं- निगण्ठ (जैन), सक्क (बौद्ध), तापस, गेरुय और परिव्राजक। सुत्तनिपात में ये भेद यों मिलते हैं - तित्थिय, आजीविक और निगण्ठ। इन्हें वादसील कहा गया है। श्रमण संस्कृति में जैन और बौद्ध दो प्रवाह प्रमुख हैं। विन्टरनित्स और डॉ. हर्मन याकोबी ने भी इनका उल्लेख किया है। जैन और बौद्ध धर्म श्रमण संस्कृति की प्रमुख शाखायें हैं। इनके धार्मिक एवं सामाजिक चिन्तन में समता और समन्वयात्मकता की प्रतिष्ठा हुई है। बौद्ध धर्म से भी जैन धर्म प्राचीन है। बौद्धपिटकों में बौद्ध धर्म का विरोध करने के प्रसंगों में तथा बौद्ध धर्म को अंगीकार करने के प्रसंगों में निर्ग्रन्थों का उल्लेख हुआ है। इससे भी यह स्पष्ट होता है कि बौद्धधर्म जैनधर्म का परवर्ती है। बौद्ध साहित्य में श्रमण परम्परा के छह सम्प्रदायों का एवं उनके आचार्यों का उल्लेख प्राप्त होता है। उन्हीं छह में चातुर्याम संवर के प्रवर्तक के रूप में भगवान महावीर का निर्ग्रन्थ ज्ञातृपुत्र के नाम से उल्लेख किया गया है। भगवान महावीर के अतिरिक्त अक्रियावाद के प्रवर्तक के रूप में आचार्य पूरणकश्यप, नियतिवाद के प्रवर्तक के रूप में मक्खलिगोसाल, उच्छेदवाद के प्रवर्तक के रूप में अजित केशकम्बलि, अन्योन्यवाद के प्रवर्तक के रूप में प्रक्रुध कात्यायन तथा निक्षेपवाद के प्रवर्तक के रूप में संजय वेलट्ठिपुत्त का वर्णन किया गया है। बौद्ध साहित्य में इनका जो वर्णन मिलता है उससे इनके सिद्धान्तों पर विशेष प्रकाश नहीं पड़ता। ये सब श्रमण संस्कृति में इसलिए स्वीकृत थे क्योंकि ये तपश्चरण, कायक्लेश, कष्ट-सहन, ध्यान आदि में विश्वास करते थे और वैदिक परम्परा में स्वीकृत ईश्वर के सृष्टि-कर्तृत्व, यज्ञ-याग, कर्म-काण्ड आदि में विश्वास नहीं करते थे। 5. सूत्रकृतांगसूत्र 1.1.11 6. स्थानांग सूत्र 9.56 7. सूत्तनिपात्त, 381 ~~~~~~~~~ 7 ~~~~~~~~~~~~~~~ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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