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खण्ड: नवम
जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम
सौंपे गये उत्तरदायित्वों को बड़ी ही निष्ठा, लगन एवं अभिरुचि के साथ संपन्न करने में अपने आपको लगा दिया। उन्हीं की प्रेरणा से प्रेक्षा ध्यान के रूप में एक अभिनव मौलिक जैन ध्यान पद्धति का सूत्रपात किया जो आज भारतवर्ष में अनेक स्थानों पर प्रचार-प्रसार करती जा रही है। श्रमण-श्रमणियों के माध्यम से यूरोप-अमेरिका आदि में भी इसका प्रचार हो रहा है।
__ प्रेक्षा शब्द की संरचना 'प्र' उपसर्ग और 'ईक्ष्' धातु के योग से हुई है। 'प्र' उपसर्ग का अर्थ उत्कृष्ट या प्रकृष्ट है। ईक्ष् धातु देखने के अर्थ में है। यों प्रेक्षा का अर्थ उत्कृष्ट रूप में, गहराई से, सूक्ष्मता से देखना है। विपश्यना का भी यही अर्थ है। जैन साहित्य में प्रेक्षा और विपश्यना ये दोनों शब्द प्रयुक्त हैं। विपश्यना बौद्ध साधना पद्धति की एक प्रक्रिया के रूप में विश्रुत है। जैन और बौद्ध पद्धतियाँ एक ही समय
और एक ही क्षेत्र में विकसित हुईं, इसलिए दोनों साधन-पद्धतियाँ एक नाम से पहचानी जाती हैं। हम सामान्य आँखों से देखते हैं उसे ईक्षा या ईक्षण कहा जाता है। यह सामान्य दर्शन भी बड़ा विलक्षण है। विज्ञान के अनुसार मनुष्य का यह छोटा सा शरीर छह सौ खरब कोशिकाओं से बना है। संसार के अनेक जटिलतम यन्त्रों से सज्जित एक कारखाने से भी यह शरीर कहीं ज्यादा जटिल और संग्रथित है। शरीर के एक-एक अंग की अपनी विलक्षणता है। वैज्ञानिक बतलाते हैं कि एक आँख के सिक्के जितने भाग में एक करोड़ बीस लाख 'कोन' और सित्तर लाख 'रोड़' कोशिकायें हैं। मस्तिष्क में दस लाख नर्व युक्त ऑप्टिव नर्व हैं जो दृष्टिकेन्द्र तक दृष्टि को पहुँचाती हैं। बहिर्जगत् को देखने और जानने की यह क्रिया नेत्र एवं मस्तिष्क द्वारा प्रतिक्षण होती रहती है। इस क्रिया से अन्य को तो देखा जा सकता है किन्तु अपने आपको पहचानने में ये चर्म-चक्षु सफल नहीं होते। बाह्य जगत् को देखने के ये सब प्रयोग ईक्षण या ईक्षा के अन्तर्गत हैं। किन्तु अपने आपको पहचानने में ये चर्म-चक्षु समर्थ नहीं होते। उसकी पहचान तो आन्तरिक चक्षुओं के प्रयोग के द्वारा ही होती है।23 “संपिक्खए अप्पगमप्पएणं" दशवैकालिक सूत्र की इस युक्ति में प्रेक्षा का मूल बीज सन्निहित है। साधक आत्मा द्वारा आत्मा का संप्रेक्षण करें। इस सूत्रात्मक वाक्य में प्रेक्षा का हार्द समाविष्ट है।
जानना और देखना चेतना का लक्षण है। आवृत चेतना में जानने और देखने 23. प्रेक्षा : एक परिचय ~~~~~~~~~~~~~~~ 39 ~~~~~~~~~~~~~~~
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