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आधुनिक चिन्तक और ध्यानसाधना
खण्ड: नवम ~~~~~~~~~~~~~~~~~mmmmmmmmmmmmmmmmm
खण्ड:- नवम
आधुनिक चिन्तक और ध्यानसाधना
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श्रीमद् राजचन्द्र की ध्यान साधना :
- आधुनिक युग के जैन परम्परा के ध्यान-साधकों में श्रीमद् राजचन्द्र जी का स्थान सर्वोपरि माना जा सकता है। क्योंकि यशोविजयजी के बाद कालक्रम से जैन परम्परा में ध्यान साधना की जो विधियाँ विकसित हुईं उनमें वर्तमान में तो श्रीमद् राजचन्द्र का क्रम पहला ही है। यद्यपि श्रीमद् राजचन्द्र ने अपनी ध्यान विधि को कोई नया नाम नहीं दिया और न उसके सैद्धान्तिक पक्ष को ही अलग से प्रस्तुत किया। उन्होंने परम्परागत आधारों पर ही उसे प्रायोगिक स्तर पर अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न किया। उन्होंने स्वयं ध्यान की गहराइयों में उतर कर उसका अनुभव किया है। उनकी कृतियों में ध्यानविधि का विवेचन तो नहीं है, किन्तु ध्यान की अनुभूतियों की अभिव्यक्ति अवश्य मिल जाती है। ‘अपूर्व अवसर' में वे स्वयं लिखते हैं।
एह परमपद प्राप्ति, कर्यु ध्यान मे, गजा वगर ने हाल मनोरथ रूप जो, तो पन निश्चय ‘राजचन्द्र' मनने रह्यो, प्रभु आज्ञाये थाशुं तेज स्वरूप जो;
श्रीमद् राजचन्द्र के अनुसार ध्यान का जो ध्येय रहा है वह परमपद अर्थात् आत्मा का शुद्ध स्वरूप ही है, इसलिए उनकी ध्यान पद्धति को यदि कोई नाम देना ही हो तो वह आत्मध्यान' ही है, वह अपने ही शुद्धस्वरूप का ध्यान है। 'अध्यात्म राजचन्द्र' नामक कृति में भी उनकी ध्यान साधना विधि को 'आत्मध्यान' के नाम
1. अपूर्व अवसर - 21 ~~~~~~~~~~~~~~~
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