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________________ यशोविजय और आनन्दघन के साहित्य में ध्यानसाधना खण्ड : अष्टम गर्त में गिर पड़ता है। इसलिए विषयावर्ती राग या रस का परित्याग ही वास्तविक त्याग है। यह तभी सधता है जब ध्यान द्वारा साधक आत्मज्योति रूप प्रकाश पा लेता है और अध्यात्म के रस का आस्वाद पा लेता है। आध्यात्मिक तृप्ति, सुख या आनन्द बड़ा विलक्षण है, शब्दों द्वारा उसे व्याख्यात नहीं किया जा सकता। वह तो गूंगे का गुड़ है, अनिर्वचनीय है। ध्यान की ही यह फल निष्पत्ति है कि वह साधक को अध्यात्म के दिव्य रस का अनुभोक्ता बना देता है। उन्होंने बड़े ही सचोट शब्दों में आगे कहा है- जिस गूढ़ रहस्य को प्रकट करने में सूर्य-चन्द्र, तारे और दीपकों की ज्योति के लिए भी अवकाश नहीं है, ये भी जिसे प्रकट नहीं कर सकते वह रहस्य उन साधकों के लिए सुप्रकटित है जो ध्यान द्वारा अज्ञानांधकार का भेदन कर आत्मज्योति का साक्षात्कार कर लेते हैं।18 ध्यान वह मित्र है जो चिरकाल से वियोग प्राप्त शमभावानुरति रूप प्रेयसी को शीघ्र ही मिला देता है। इसलिए साधक के लिए तो वही मित्र हितकर है, संसार के कृत्रिम मित्रों से उसे क्या प्राप्त होगा। प्रस्तुत श्लोक में आत्मज्योति की दिव्यता, प्रोज्ज्वलता और प्रकृष्टता का जो उल्लेख हुआ है उसी के प्रभाव से साधक अध्यात्म के गूढ़ रहस्य को स्वायत्त कर सकता है। अत्यन्त उच्च ध्यानरूपी प्रासाद में प्रशम रूपी पलंग पर स्थित साधक परम आनन्द का अनुभव करता है। वह प्रासाद ऐसा है जहाँ काम के बल रूपी आलाप का संचार अवरुद्ध है तथा जहाँ शील रूपी शीतल सुगंध परिव्याप्त है।19 ___ इस वर्णन क्रम को आगे बढ़ाते हुए कहा है- ध्यान रूपी प्रासाद में व्यक्त रूप में आहूत-आमंत्रित पवित्र उत्तम महान् अतिथि आत्मा की पूजा-सत्कार शील रूपी आसन से दम रूपी चरणोदक-चरण प्रक्षालन के जल से प्रातिभभाव-स्वाभाविक या आध्यात्मिक समतारूपी मधुपर्क द्वारा पूजा-अर्चना निष्पादित होती है।20 18. वही, गा. 5.17.7-8 19. वही, गा. 5.17.9 20. वही, गा. 5.17-10 ~~~~~~~~~~~~~~~ 10 ~~~~~~~~~~~~~~~ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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