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________________ खण्ड : सप्तम जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम बहुत संक्षिप्त है । इसमें अनुष्टुप् छन्द में रचित मात्र 143 श्लोक हैं । इस छोटे से कलेवर में रचयिता ने योग जैसे गंभीर विषय पर संक्षेप में जो प्रकाश डाला है, वह वास्तव में गागर-में- सागर भरने जैसा उनका उपक्रम है। इस कृति की भाषाशैली अत्यन्त सरल है, प्रसादगुण युक्त है, प्रभावक एवं प्रेरक है । नेमिदास द्वारा रचित 'पंच परमेष्ठी मंत्रराज ध्यानमाला' में इस रचना का पतंजलि रचित 'योगदर्शन' और आचार्य हेमचंद्र के 'योगशास्त्र' के साथ उल्लेख हुआ है। इससे यह अनुमान किया जा सकता है कि उस समय यह ग्रन्थ जैनयोग के क्षेत्र में अतिप्रचलित रहा होगा। ग्रन्थ की रचना एवं प्रतिपादन शैली को देखते हुए ऐसा लगता है कि यह मौलिक कृति नहीं है। 'ज्ञानार्णव', 'योगशास्त्र' आदि योगविषयक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों के आधार पर यह संक्षिप्त, सारभूत संग्रह कृति है । 'योगप्रदीप' का मुख्य विषय आत्मस्वरूप का दर्शन या साक्षात्कार है । आत्मा अपने शुद्ध परमात्म भाव के रूप में किस प्रकार परिणत हो सकती है तथा सर्वसंकल्पवर्जित परमानन्द को कैसे प्राप्त कर सकती है, इस विषय का इसमें विशेष रूप से निरूपण हुआ है। 'योगप्रदीप' में ध्यान : आत्मा की परमात्म भाव की दिशा की ओर गतिशील आध्यात्मिक यात्रा में उन्मनी भाव, समरसी भाव, ध्यान, सामायिक इत्यादि किस प्रकार सहयोगी बन सकते हैं, यह प्रतिपादित हुआ है। रचनाकार-संग्राहक के समय आदि के संबंध में प्रामाणिक रूप से कोई विशेष ऐतिहासिक सामग्री प्राप्त नहीं होती। इतना ही कहा जा सकता है कि ये आचार्य हेमचन्द्र के पश्चातवर्ती थे । रचनाकार ने साधक का ध्यान देहवर्ती आत्मा के शुद्ध स्वरूप की ओर मोड़ते हुए लिखा है - जिसका दर्शन करने के लिए तीर्थ - तीर्थ में लोग घूमते हैं वह देव परमेश्वर अपनी देह में ही विद्यमान है, उसे देख नहीं सकते, उस ओर देखने का लोग प्रयास नहीं करते। जिनकी बुद्धि में अज्ञान भरा है वे स्थान-स्थान पर देवदर्शन हेतु जाते रहते हैं, वह देव तो उनके शरीर में ही आत्मा के रूप में संप्रतिष्ठित है, उसे नहीं देख पाते । Jain Education International 53 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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