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________________ आचार्य हेमचन्द्र, योगप्रदीपकार व सकलचन्द्रगणि के साहित्य में ध्यानसम्बन्धी निर्देश खण्ड : सप्तम किसी भी ग्रन्थकार या चिन्तक के विचारों की परख केवल बाह्य रूप में ही न की जाकर अपेक्षित दृष्टि से उसका अन्तर्वीक्षण किया जाना आवश्यक है। आचार्य हेमचन्द्र के सूक्ष्म हार्द का संस्पर्श करने से उपयुक्त तथ्य प्रकट होता है। प्राणायाम का एक अभिनव आध्यात्मिक रूप भी जैन मनीषियों ने उपस्थापित किया है। उन्होंने कहा है कि परभावों का आत्मव्यतिरेक, अन्य भावों का रेचन, बहिर्निष्कासन, आत्मभावों का पूरण अपने आप में समावेशन तथा उनका अन्तरात्मा में संस्थापन टिकाव आध्यात्मिक प्राणायाम है जो साधक को बहिरात्म भाव से अन्तरात्म भाव की ओर ले जाता हुआ आगे परमात्म भाव में तन्मय करने का उपक्रम है। प्राणवायु के सिद्ध हो जाने पर विविध रूप में काल ज्ञान की चर्चा की है। उसका अध्यात्मयोग से यद्यपि कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि बाह्य सिद्धिमूलक विधिक्रम आचार्य हेमचन्द्र के समय में विशेष रूप से प्रचलि थे। लोगों पर उनका प्रभाव था इसलिए उन्होंने भी इन विषयों का ग्रन्थ में समावेश किया है। नाड़ी शुद्धि का भी उन्होंने वर्णन किया है, उसकी विधि का भी उल्लेख किया है। 54 नाड़ी शुद्धि का सम्बन्ध मुख्यतः हठयोग के साथ है। उनके समय में नाथ सम्प्रदाय आदि में हठयोग का विशेष प्रचलन था । घेरण्ड संहिता में कहा गया है कि नाड़ी शुद्धि का समासादन कर योगी प्राणायाम का अभ्यास करें । 55 योग के क्षेत्र में अनेकानेक योगसिद्धियों में परकायप्रवेश का भी वर्णन प्राप्त होता है। इस सम्बन्ध में एक सुप्रसिद्ध घटना का उल्लेख मिलता है। 'शंकर दिग्विजय' आदि ग्रन्थों के अनुसार आदि शंकराचार्य के साथ शास्त्रार्थ में जब मण्डनमिश्र जो महान् मीमांसक थे, पराजित हो गये तब मण्डनमिश्र की पत्नी भारती, जो अपने युग की प्रख्यात विदुषी थी, के साथ आचार्य शंकर का शास्त्रार्थ शुरू हुआ । शास्त्रार्थों में उस समय होने वाले विषयों का सीमाकरण नहीं होता था । जिस किसी 54. वही, 5.255-260 55. घेरण्ड संहिता श्लोक 5.32 Jain Education International 28 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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