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________________ खण्ड : सप्तम जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम इतना अवश्य है कि जब शारीरिक व्याधि-दोष अपगत हो जाते हैं शरीर स्वस्थ होता है, मन प्रसन्न होता है तो ध्यानमूलक साधना में अग्रसर होने में अनुकूलता और सुविधा होती है। प्राणवायुविजय के सन्दर्भ में ग्रन्थकार ने उसके भेद-प्रभेद, उनके स्वरूप, वर्ण आदि का उल्लेख किया है। प्राणायाम का बहुविध विवेचन, भौतिक वैशिष्ट्य या चमत्कारोत्पादक परिणाम इत्यादि का विस्तार से वर्णन कर आचार्य हेमचन्द्र ने आध्यात्मिक दृष्टि से प्राणायाम की उपादेयता को अस्वीकार करते हुए कहा है:- प्राणायाम से पीड़ितउद्वेजित मन स्वस्थ, आत्मस्थ नहीं हो सकता। क्योंकि प्राणवायु का निग्रह करने से शरीर में पीड़ा उत्पन्न होती है, वैसा होने से मन में चंचलता का उद्भव होता हैपूरक, कुंभक, रेचक के अभ्यास में बड़ा परिश्रम करना पड़ता है वैसा करने से चित्त में संक्लेश उत्पन्न होता है, चित्त की संक्लिष्टतावस्था मोक्ष में विघ्न है।53 . आचार्य हेमचन्द्र का यह कथन विशेषत: उन साधकों पर लागू होता है जो प्राणायाम को ही सब कुछ मानकर उसे ही अपने परम लक्ष्य का हेतु समझते हैं। जैसा कि कतिपय हठयोगी करते रहे हैं और करते हैं। प्राणायाम के उत्तरगामी योगांग प्रत्याहार, धारणा, ध्यान की समाधि की दिशा में उनकी गति अग्रसर नहीं होती, क्योंकि वे प्राणायाम में ही उलझे रहते हैं। यही कारण है कि प्राणायाम को मोक्ष की दृष्टि से आचार्य हेमचन्द्र ने अनुपयोगी कहा है। किन्तु प्राणवायु के नियमन की दृष्टि से उसका संतुलित सुसीमित प्रयोग देहशुद्धि, वायु-शुद्धि में उपयोगी होता है। इसलिए वह सर्वथा निरर्थक नहीं है। आचार्य का यहाँ ऐसा भाव है कि आत्यन्तिक रूप में जब उसको स्वीकार किया जाता है तब उसकी उपयोगिता मिट जाती है और ध्यानादि की ऊर्ध्वगामिता में वह बाधक जैसा बन जाता है। यदि प्राणायाम सर्वथा अनुपयोगी और विघ्नकारक ही होता तो आचार्य शुभचन्द्र तथा स्वयं हेमचन्द्र विस्तार पूर्वक उसका अपने ग्रन्थों में समायोजन ही क्यों करते। 53. वही, 6.4-5 ~ ~~~ ~~~~ ~~~~~ ~- 27 ~ ~ ~~ ~ ~~ ~ ~ ~~ ~ ~ ~ ~ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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