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________________ खण्ड: सप्तम जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम प्राचीन जैन परम्परा में आसन की जगह स्थान का प्रयोग हुआ है। ओघ नियुक्ति भाष्य में स्थान के तीन प्रकार बतलाये गये हैं:- (1) ऊर्ध्वस्थान (2) निषीदन स्थान (3) शयन-स्थान।47 स्थान का अर्थ गति की निवृत्ति अर्थात् स्थिर रहना है। आसन का शाब्दिक अर्थ है बैठना, पर वे आसन खड़े, बैठे, सोते तीनों अवस्थाओं में किये जाते हैं। कुछ आसन खड़े होकर करने के हैं, कुछ बैठे हुए और कुछ सोये हुए करने के हैं। इस दृष्टि से आसन शब्द की अपेक्षा स्थान शब्द अधिक अर्थ-सूचक है। ध्यान की विधि: हेमचन्द्र के अनुसार सबसे पहले ध्यानोद्यत साधक दैहिक अनुकूलता को देखते हुए ऐसे आसन में स्थित हो जिसमें वह दीर्घकाल तक बैठा रह सके। तनाव आदि से जनित विचलन उत्पन्न न हो। उसका मुँह बन्द हो। दोनों होठ परस्पर मिले हों। वह अपने दोनों नेत्रों को नासिका के अग्रभाग पर केन्द्रित रखे, टिकाये रखे। उसके दाँतों की ऐसी स्थिति हो कि ऊपरी दाँत नीचे के दाँतों का संस्पर्श न करें। क्योंकि परस्पर संस्पृष्ट दाँत मुख में तनाव उत्पन्न करते हैं। हृदय में वह साधनों के प्रति अत्यन्त उत्साह लिये रहे ताकि मुख पर प्रसन्नता खिली रहे। वह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर अपना मुख किये रहे। मन में जरा भी प्रमाद या असावधानी न आये। इस ओर जागरूक बना रहे। उसका शरीर सुसंस्थित हो। मेरुदण्ड को सीधा किये हए वह बैठे। इस प्रकार जो ध्यान में संलग्न होता है वह ध्याता की यथार्थ भूमिका प्राप्त करता है।48 प्राणायाम: प्राणायाम अष्टांग योग का चौथा अंग है जिसका सम्बन्ध श्वास-प्रश्वास के नियमन, नियंत्रण, सम्यक् व्यवस्थापन से है। योगांगों की परम्परा को ध्यान में रखते हुए अपने ‘योगशास्त्र' के पंचम प्रकाश में प्राणायाम का विभिन्न अपेक्षाओं से वर्णन किया है। उन्होंने प्रारम्भ में लिखा है कि किन्हीं योगाचार्यों ने ध्यान की सिद्धि के लिए प्राणायाम का आश्रय लिया है। उसे उपयोगी बताया है क्योंकि उसके बिना मन 47. ओघनियुक्ति भाष्य 152 48. योगशास्त्र 4.135-136 wwwwwwwwwwwwwwws 25 ~~~~~~~~~~~~~~~ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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