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________________ आचार्य हेमचन्द्र, योगप्रदीपकार व सकलचन्द्रगणि के साहित्य में ध्यानसम्बन्धी निर्देश खण्ड : सप्तम सयोगी ध्याता भी दो प्रकार के हैं- छद्मस्थ और केवली। एक आलम्बन म एक मुहूर्त 48 मिनट पर्यन्त मन का स्थिर रहना छद्मस्थ योगियों का ध्यान कहलाता है। वह धर्मध्यान और शुक्लध्यान के भेद से दो प्रकार का है। अयोगियों का ध्यानयोग मन, वचन, काय का निरोध होना है और सयोगी केवलीदशा में भी योग का निरोध करते समय ही ध्यान होता है, अत: वह अयोगियों के ध्यान के समान ही है।10 ध्यान का काल: एक मुहूर्त ध्यान में व्यतीत हो जाने के पश्चात् ध्यान स्थिर नहीं रहता,11 फिर या तो वह चिन्तन कहलाएगा या आलम्बन की भिन्नता से दूसरा ध्यान कहलाएगा। अभिप्राय यह है कि ध्याता एक ही आलम्बन में एक मुहूर्त से अधिक स्थिर नहीं रह सकता। हाँ, एक के पश्चात् दूसरे और दूसरे के पश्चात् तीसरे आलम्बन को ग्रहण करने से ध्यान की परम्परा मुहूर्त से अधिक भी चल सकती है, परन्तु एक ही आलम्बन में ध्यान मुहूर्त से अधिक काल तक स्थिर नहीं रह सकता। ध्यान की ध्येयवस्तु : द्वादश भावनाएँ: जैन साधना पद्धति में भावना का सदा से बड़ा महत्त्व रहा है। किसी भी उपक्रम, कार्य या उद्यम के मूल में भाव या भावना की अवस्थिति होती है। यदि उसको स्थिरतापूर्वक सहेजा जाये तो उसका बहुत ही सुन्दर परिणाम प्रकट होता है। चिन्तन, विचार या भाव का अनवरत भावित रहना, उसमें संलग्न रहना, उसकी आवृत्ति करते रहना, इनका अभ्यास करना भावना या भावनायोग कहा जाता है। ध्यान के लिए पवित्र मानसिकता, संकल्पात्मक दृढ़ता, स्थिरता बनाये रखने के लिए भावनाओं का अभ्यास अति आवश्यक है। क्योंकि वैसा हुए बिना मन में आया हुआ कोई भी सत् चिन्तन टिकता नहीं, मन की एकाग्रता घटित होती नहीं। यही कारण है कि आचार्य हेमचन्द्र ने ध्यान की पृष्ठभूमि की तैयारी में भावनाओं को परमावश्यक माना और उन्होंने बारह भावनाओं का संक्षेप में बड़ा ही सुन्दर विवेचन किया। 10. वही, 4.115 11. (क) तत्त्वार्थसूत्र 9.37 (ख) योगप्रदीप 15.33 ~~~~~~~~~~~~~~~ 8 ~~~~~ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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