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________________ आचार्य शुभचन्द्र,भास्करनन्दि व सोमदेव के साहित्य में ध्यानविमर्श खण्ड : षष्ठ रूपस्थ ध्यान : 39 वें सर्ग में आचार्य शुभचन्द्र ने रूपस्थ ध्यान का वर्णन किया है। यह अरिहंत देव के भावात्मक स्वरूप पर अवलम्बित चैतसिक एकाग्रता का रूप लिये हुए है। अरिहंत देव दैहिक रूप में आज हमारे बीच विद्यमान नहीं हैं। वे परिनिर्वाण या सिद्धत्व प्राप्त कर चुके हैं। इस ध्यान में उनकी सयोग केवलीअवस्था के स्वरूप का चिन्तन किया जाता है। उनके समोसरण की परिकल्पना की जाती है उनके देवादिवंदित महिमामय अतिशय पूर्ण समोसरण में विराजित आध्यात्मिक वैभव से परिपूर्ण स्वरूप का अवलम्बन कर ध्यान कर ध्यान किया जाता है। उस पर चित्त को एकाग्र किया जाता है।4 अरिहंत देव के स्वरूप का ध्यान करने वाला साधक अन्य किसी की शरण नहीं लेता, साक्षात् उसमें ही अपने मन को संलीन किये रहता है, उसी में तन्मय रहता है। ध्यान के अभ्यास द्वारा संयमी साधक सर्वज्ञ प्रभु के स्वरूप के साथ तन्मयता प्राप्त कर लेता है। उस समय वह अपनी असर्वज्ञ आत्मा को सर्वज्ञ स्वरूप अनुभूत करता है। उसके यह भावोद्रेक होता है कि जैसे ये सर्वज्ञ देव हैं मेरी आत्मा भी तदनुरूप स्वरूपता को प्राप्त है। इसलिए मैं उनसे पृथक् नहीं हूँ, अन्य नहीं हूँ, विश्वदर्शीसर्वदर्शी हूँ। रूपातीत ध्यान : 40वें सर्ग में आचार्य शुभचन्द्र ने रूपातीत ध्यान का निरूपण किया है। अरिहन्त देव सयोगावस्था में देहयुक्त, मूर्त या रूपयुक्त होते हैं अतएव उनके भावमय स्वरूप के आधार पर जो ध्यान किया जाता है उसे रूपस्थ ध्यान कहा जाता है। किन्तु सिद्धत्व प्राप्त कर लेने के पश्चात् वे अमूर्त, अशरीरी रूपातीत हो जाते हैं। इसलिए उनको अभिलक्षित कर जो ध्यान किया जाता है उसे रूपातीत कहा गया है। ग्रन्थकार ने लिखा है- जो ध्यानयोगी वीतराग प्रभु का ध्यान करता है, वह वीतराग हो जाता है। कर्मों से विमुक्त हो जाता है, छूट जाता है और जो रागयुक्त साधक सराग का 94. वही, 39.1-8 95. वही, 39.33 96. वही, 39-43 po8 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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