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________________ खण्ड : षष्ठ जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम R जो मोक्ष है उसका अविनश्वर अनन्त अव्याबाध स्वाधीन सुख किस उपाय से प्राप्त होता है ? अपने स्वरूप को जानने से मैंने तीनों लोकों को जान लिया है क्योंकि मैं ही सर्वत्र, सर्वदर्शी और निरंजन हूँ। विपाक विचय : 35वें सर्ग में विपाक विचय धर्मध्यान का विवेचन हुआ है। ग्रंथकार ने कहा है- प्राणियों द्वारा उपार्जित किये हुए कर्मफल का उदय विपाक कहा जाता है। वह कर्मोदय क्षण-प्रतिक्षण होता रहता है। ज्ञानावरण आदि अनेक रूपों में ही जीवों के कर्म-समूह निश्चित द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव को प्राप्त कर इस लोक में अनेक प्रकार से फल देते हैं। कई प्राणी पुष्पों की मालाएँ, सुन्दर शय्या, आसन, यान, वस्त्र, वनिता, वाद्य, मित्र, पुत्र एवं कर्पूर, अगरु, चन्दन, वन-क्रीड़ा, पर्वत, ध्वजा, गज, अश्व, चामर, नगर, खाद्य, पेय, योग्य उत्तमोत्तम पदर्थ तथा वस्तुसमूह को प्राप्त कर सुख भोगते हैं। समस्त ऋतुओं में सुखपद रमणीय, कामभोगोपयोगी स्थान, क्षेत्र प्राप्त कर अतिशय सुख का अनुभव करते हैं। वहाँ दूसरी ओर प्राणी अपने ही कर्मों के कारण संसार में भाले, तलवार, छुरे, यन्त्रात्मक आदि शस्त्र सर्प, विष, दुष्ट हाथी, अग्नि, तीव्र अशुभ ग्रह आदि, दुर्गन्धित सड़े हुए अंग, कीट, कीटाणु, कंटक, रज, क्षार, अस्थि कर्दम, पाषाण, बन्दीगृह सांकल, कीलें बेड़ी शत्रु आदि को प्राप्त होते हुए विविध दु:खों को भोगते हैं।1 कर्मफल के वैविध्य का ग्रन्थकार ने अनेक प्रकार से विवेचन किया है। इस पर ध्यान को एकाग्र करने से आत्मा में उज्ज्वल भावों का उदय होता है और पापपूर्ण कलुषित दूषित कर्मों से बचने की प्रेरणा प्राप्त होती है। यह आत्माभ्युदय का हेतु है। संस्थान विचय : 36 वें सर्ग में ग्रन्थकार ने संस्थान-विचय धर्मध्यान का विवेचन किया है। इसमें लोक के स्वरूप पर ध्यान को केन्द्रित किया जाता है। इस ध्यान का वर्णन करते हुए ग्रन्थकार ने लिखा है- पहले तो सब अनंतानंत प्रदेश रूप आकाश विद्यमान है। PARDA See 90. वही, 34.8-13 91. वही, 35.1-5 ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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