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________________ आचार्य शुभचन्द्र,भास्करनन्दि व सोमदेव के साहित्य में ध्यानविमर्श खण्ड : षष्ठ अन्यत्व भावना: सांसारिक जड़-चेतनात्मक जिन पदार्थों को जीव अपना मानता है वे तत्त्वत: उसके अपने नहीं हैं, वे पर हैं, अन्य हैं, अन्यत्व भावना का यही निष्कर्ष है जिसे ग्रंथकार ने प्रकट किया है। बड़े ही मार्मिक शब्दों में उन्होंने लिखा है कि जो शरीर मूर्त, अचेतन, विविध प्रकार के पुद्गल परमाणुओं से विरचित है, जरा विचार तो करो-अमूर्त चेतन अपौद्गलिक आत्मा के साथ उसका क्या सम्बन्ध हो सकता है। जब देह ही जीव से अत्यन्त भिन्न है, अन्य है, तब बन्धु-बान्धव तथा कुटुम्बी जन का उसके साथ ऐक्य कैसे हो सकता है ? इस संसार में जो जड़ और चैतन्य पदार्थ उस प्राणी के साथ सम्बद्ध हैं वे सर्वत्र अपने-अपने स्वरूप से भिन्न हैं।19 अशुचि भावना: शास्त्रकारों ने कहा है कि ऊपर से अत्यन्त कमनीय, रमणीय, दृष्टिगोचर होने वाली सुन्दर काया की वास्तविकता उन मलमूत्र-विष्ठा, रक्त, श्लेष्म आदि जघन्य पदार्थों से संगृहीत है जिन्हें कोई देखना तक नहीं चाहता। सौन्दर्य तो केवल बहुत हल्की सी बाहरी पर्त है जिसके हटते ही यह सब वीभत्सता प्रकट हो जाती है। बाह्य मनोज्ञता-मनोहरता, भव्यता के भीतर जो विपुल अशुचिता भरी पड़ी है, उस पर साधक चिन्तन करे। वैसा करने से उसे आध्यात्मिक सौन्दर्य का भान होगा। अशुचि भावना के इसी आशय की आचार्यों एवं चिन्तकों ने विवेचना की है। आचार्य शुभचन्द्र ने इस भावना के वर्णन के अन्त में संसारासक्त प्राणी को उद्बोधित करते हुए कहा है कि हे मूढ़ ! इस जगत् में मनुष्यों का यह शरीर चर्म पटल से ढका हुआ एक अस्थिपंजर है। विकृत मवाद की दुर्गन्ध से परिपूर्ण है। काल के मुख में उपस्थित मानों यह रोग रूपी सों का घर है। मनुष्यों के लिए ऐसा शरीर किस प्रकार प्रीति करने योग्य है।20. आम्रव-संवर-निर्जरा भावना : आगे आस्रव, संवर और निर्जरा भावना का ग्रंथकार ने संक्षेप में वर्णन किया 19. वही, अन्यत्व भावना, 2.6-8 20. वही, अशुचि भावना 2.13 ~~~~~~rrrrrrrrrrrrr 16 ~~~~~~~~~~~~~~~ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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