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________________ खण्ड : षष्ठ जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम आगे ग्रंथकार ने परिग्रह के बाह्य और अंतरंग भेदों की चर्चा की है। स्वजन, धन-धान्य, स्त्री-पुत्र, परिजन, विविध-सम्पत्ति, आभरण आदि बाह्य परिग्रह हैं।' पदार्थ, सत्त्वविषयक भोगोपभोग सम्बन्धी आन्तरिक मोह एवं आकर्षण, आन्तरिक परिग्रह में परिगणित हैं। आचार्य ने प्रस्तुत सर्ग में साधक को परिग्रहत्याग का बड़े ही मार्मिक शब्दों में उपदेश दिया है। आगे उन्होंने पंच समितियों का स्वीकरण, कषायों का त्याग, इन्द्रिय-जय का अभ्यास, इत्यादि का विवेचन किया है जो पठनीय है। इन सबके परिसेवन से साधक के व्यक्तित्व में मूलत: वैसी योग्यता निष्पन्न हो जाती है कि वह ध्यान - साधना में नि:शंक समुद्यत और संलग्न हो सकता है। 'ज्ञानार्णव' का मुख्य विषय ध्यानयोग है। अतएव ग्रंथकार ने ध्यान के सम्बन्ध में उन सभी विवेच्य विषयों का सांगोपांग निरूपण किया है जिससे साधक तद्विषयक योग्यता प्राप्त कर सके। ध्यानसिद्धि : साध्यता - असाध्यता : मनीषियों, चिन्तकों एवं ग्रंथकारों के भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं से अपने-अपने विशिष्ट दृष्टिकोण होते हैं, जिनके अनुसार वे अपनी रचनाओं में अभीष्ट विषयों का प्रतिपादन करते हैं। यहाँ हम आचार्य हेमचन्द्र और आचार्य शुभचन्द्र की निरूपण विद्या पर कुछ चिन्तन करें तो ऐसा प्रतीत होता है कि आचार्य शुभचन्द्र की दृष्टि में साधना का परमोत्कृष्ट रूप लक्षित रहा। आचार्य हेमचन्द्र ने साधना के वैसे रूप को उद्दिष्ट कर अपनी लेखनी चलायी जो सर्वसाधारण द्वारा स्वीकार करने और निर्वाह करने योग्य हो। पहले यह कहा जा चुका है कि अपने अनुयायी, गृही शिष्य राजा कुमारपाल की अभ्यर्थना पर उन्होंने 'अध्यात्मोपनिषद्' के रूप में योगशास्त्र' की रचना की। एक राजा का जीवन सांसारिकता में कितना ग्रस्त होता है, यह सर्व विदित है। जब कुमारपाल ने चाहा कि अपना राजकीय जीवन व्यतीत करते हुए, राज्योचित उत्तरदायित्वों का निर्वाह करते हुए भी वे अध्यात्मयोग की साधना पर अग्रसर हो सकें 5. वही, 16-6 wwwwwwwwwwwwwww 7 mmmmmmmmmmmmmm~ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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