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________________ आचार्य हरिभद्र सूरि के ग्रन्थों में ध्यान-साधना खण्ड : पंचम है। उन्होंने लिखा है कि सभी परिविशुद्ध धर्मव्यापार-धार्मिक क्रियाकलाप साधनामूलक उद्यम, ज्ञान, तप आदि की आराधना योग में समाविष्ट है। क्योंकि वे आत्मा को मोक्ष के साथ जोड़ते हैं। योग का अर्थ ही जोड़ने के साथ जुड़ा है। किन्तु यहाँ विशेष रूप से स्थान आदि से सम्बद्ध धर्मव्यापार को उद्दिष्ट कर योग को व्याख्यात किया जा रहा है।45 लेखक जिस योग का वर्णन करना चाहते हैं उसके लिए उन्होंने केवल “ठाणाइगओ" पद का ही प्रयोग किया है। उपाध्याय यशोविजय जी ने ठाणाइगओ का अर्थ स्थान किया है। उपाध्याय यशोविजय जी द्वारा की गई व्याख्या के अनुसार यहाँ स्थानगत से ग्रन्थकार का अभिप्राय स्थान, आसन, ध्यान आदि से है। आगे उन्होंने लिखा है कि योगतंत्र-योगशास्त्र में स्थान, ऊर्ण, अर्थ, आलम्बन तथा अनालम्बन योग के ये पाँच भेद प्रतिपादित हुए हैं। इनमें प्रारम्भ के दो कर्मयोग तथा बाद के तीन ज्ञानयोग में समाविष्ट हैं।46 'स्थीयते इति स्थानम्' स्थान का अर्थ स्थित होता है। योग में आसन शब्द जिस अर्थ में प्रयुक्त होता है, उसी अर्थ में स्थान का प्रयोग हुआ है। आसन के लिए स्थान शब्द का प्रयोग अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है। आसन का अर्थ बैठना है, किन्तु सभी आसन बैठकर नहीं किये जाते, वे भिन्न-भिन्न स्थितियों में किये जाते हैं। उन सब के लिए स्थान शब्द अधिक प्रयुक्त होता है। जैनशास्त्रों में आसन के लिए प्राय: 'ठाण' शब्द दृष्टिगोचर होता है। 'ऊर्ण' शब्द का अर्थ सामान्यत: ऊन है। यहाँ ऊर्ण शब्द का प्रयोग बहुत ही संक्षिप्त सूत्रात्मक शब्द समवाय के लिए किया गया है जिसका योगी अपनी एक विशेष भूमिका में समुच्चारण करता जाता है। आज हमें इस प्रकार के प्रयोग का कोई रूप प्राप्त नहीं होता किन्तु इस उल्लेख से ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसे संक्षिप्त पदात्मक सूत्र रहे हों, जिनके अव्यक्त उच्चारण, संस्मरण ध्यान में बहुत उपयोगी रहे हों। अर्थयोग का अभिप्राय विशिष्ट शब्दसमूह 45. योगविंशिका - 1, पृ. 267 46. यशोविंशिका - 2, पृ. 267 ~~~~~~~~~~~~~~~ 32 ~~~~~~~~~~~~~~~ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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