SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खण्ड : चतुर्थ है कि जिन्होंने अपने योगों को स्थिर कर लिया है - मानसिक, वाचिक और कायिक प्रवृत्तियों को जो नियन्त्रित कर चुके हैं, जिनके मन से चंचलता का अपगम हो गया है वैसे साधक लोगों से व्याप्त परिपूर्ण ग्राम में, शून्य स्थान में या वन में कहीं भी ध्यान करें कोई अन्तर नहीं आता । 29 उपर्युक्त दोनों गाथाओं में कथित ध्यानाभ्यासी दो प्रकार के हैं, पहले वे हैं जो साधना की प्रारम्भकालीन स्थिति में होते हैं । दूसरे वे हैं जिनकी साधना परिपक्व हो जाती है । साधक को ध्यान किस प्रकार की दैहिक अवस्था में करना चाहिए, निर्देश करते हुए लिखा है - जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम " किसी भी सधी हुई शारीरिक अवस्था में, जिसमें ध्यान करते समय पीड़ा उत्पन्न न हो, साधक ध्यान करें, चाहे वे खड़े होकर कायोत्सर्ग अवस्था में अथवा बैठकर आसन विशेष में ध्यान करें। 30 इस गाथा में रचनाकार ने ध्यान के साथ आसनों का क्या सम्बन्ध है, इस पर अपने विचार व्यक्त किये हैं । आसनों की इतनी उपयोगिता है कि वे ध्यान में सहायक बनें। अन्यथा वे योग के बहिरंग में आते हैं। असुविधा न हो तो वह जैसा जब अनुकूल समझे वैसे आसन आदि का यथेच्छ उपयोग कर सकता है। इससे यह भी प्रकट होता है कि जिन आसनों में स्थित होने से अंगों में खिंचाव हो, असुविधा हो वे आसन ध्यान अप्रयोज्य हैं। होगा । 3 लेखक ने आगे निरूपित किया है कि ध्यान करते हुए साधक का यदि ध्यान उपरत हो जाय, चला जाय तो उसे अनित्यत्व आदि भावनाओं में उपरत होना चाहिए । उससे चित्त सद्भावान्वित होगा तथा ध्यान की भूमिका में पुनः अवस्थित होने में सफल 1 29. वही, गा. 36 30. वही, गा. 39 31. वही, गा. 65 इसका धर्मध्यान के पश्चात् रचनाकार ने शुक्लध्यान का, उसके भेदों का बड़े ही नपे-तुले शब्दों में विवेचन किया है। Jain Education International 25 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy