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________________ खण्ड : चतुर्थ जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम ___ संस्कृत की इसी विशेषता को ध्यान में रखते हुए आचार्य उमास्वाति ने जैन तत्त्वों के निरूपण हेतु संस्कृत भाषा में तत्त्वार्थसूत्र की रचना की। सूत्रबद्ध शैली में ग्रन्थ रचने की संस्कृत में एक विशेष पद्धति रही है। . सूत्रशैली संक्षिप्ततम शब्दावली में अधिकतम आशय को व्यक्त करने की एक विशेष विधा रही है। आचार्य उमास्वाति ने इसी दृष्टिकोण से संस्कृत में यह ग्रन्थ रचा। ऐतिहासिक दृष्टि से जैन परम्परा में संस्कृत की यह पहली रचना है। यही एक मात्र ऐसा ग्रन्थ है जो कतिपय सूत्रों के भेद के साथ श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं द्वारा मान्य है। ग्रन्थकार श्वेताम्बर परम्परा में उमास्वाति के नाम से और दिगम्बर परम्परा में उमास्वामी के नाम से विख्यात है। भारत के प्राचीन ग्रन्थकारों ने अपने ग्रन्थों में अपने जीवनवृत्त, समय आदि ऐतिहासिक तथ्यों का प्राय: उल्लेख नहीं किया है। इसलिए उनके काल-निर्धारण में बड़ी कठिनाई प्रतीत होती है। तत्त्वार्थसूत्र के रचनाकार के संबंध में भी यही बात है। यद्यपि उन्होंने अपने ग्रन्थ के अन्त में प्रशस्ति अवश्य लिखी है किन्तु उसमें मात्र अपनी गुरुपरम्परा का ही उल्लेख किया है। - प्राचीन ग्रन्थकारों द्वारा अपना परिचय न दिये जाने के पीछे विद्वानों की यह मान्यता है कि वे बड़े ही निस्पृह और साधनाप्रवण थे। इसलिए वे अपना परिचय देने में जरा भी अभिरुचिशील नहीं रहे। संभवत: वे उसे मान का रूप समझते रहे हों। उनका एक मात्र यही भाव रहा कि लोग उनके द्वारा निरूपित तत्त्वों से लाभान्वित हों। सुप्रसिद्ध विद्वान् पं. सुखलाल संघवी ने 'तत्त्वार्थसूत्र' की प्रस्तावना में इस पर काफी ऊहापोह किया है। कुछ लोगों की ऐसी मान्यता है कि उमास्वाति आचार्य कुन्दकुन्द के शिष्य थे। किन्तु इस संबंध में कोई ठोस प्रमाण प्राप्त नहीं होते। गृद्धपिच्छाचार्य विशेषण भी उनके नाम के साथ जुड़ा है। किन्तु गवेषणा करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि यह उनका नाम नहीं वरन् उनका विशेषण था। संभव है वे मयूर के पंखों की पिच्छी के स्थान पर गृद्ध के पंखों की पिच्छी रखते रहे हों। आचार्य उमास्वाति का समय विभिन्न विद्वानों द्वारा प्रथम से चतुर्थ शती के मध्य माना जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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