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________________ शौरसेनी प्राकृत साहित्य में ध्यानयोग खण्ड : तृतीय यदि तुम अपने चित्त को ध्यानसिद्धि में स्थिर करना चाहते हो तो दु:सहविकल्पों में मूर्च्छित एवं अनुरंजित मत बनो। इस ग्रन्थ में ध्यान के आर्त आदि भेदों का निर्देश नहीं किया गया है पर वहाँ परमेष्ठिवाचक अनेक पदों के जपने और पाँचों परमेष्ठियों के स्वरूप के विचार करने की जो प्रेरणा की गई है उससे पदस्थ, पिण्डस्थ, रूपस्थ और रूपातीत ध्यानों का कुछ संकेत मिलता है। टीकाकार ब्रह्मदेव ने (वि. 11-12 वीं शती) आगम के अनुसार आर्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान और शुक्लध्यान ये चार भेद किये हैं। ___ आगे बताया है कि मन्त्र-वाक्यों में जो स्थित है वह पदस्थ ध्यान है, निज आत्मा का चिन्तन पिण्डस्थ ध्यान है, सर्वचिद्रूप का चिन्तन जिसमें होता है वह रूपस्थ ध्यान है और निरंजन का जो ध्यान है वह रूपातीत ध्यान है। 8 एकमात्र आत्मा, आत्मा में अपने स्वरूप में स्थिर हो सके। यही उत्कृष्ट ध्यान है।9 ___ इस प्रकार शौरसेनी आगमतुल्य साहित्य में षट्खण्डागम, मूलाचार, भगवतीआराधना आदि में ध्यान के चारों प्रकार आदि का उल्लेख मिलता है, किन्तु इन ग्रन्थों में विशेषता यह रही है कि आत्मविशुद्धि का हेतु धर्मध्यान और शुक्लध्यान को ही माना गया है। इन ग्रन्थों में ध्यान को परिभाषित या व्याख्यायित करने की अपेक्षा वह आध्यात्मिक विकास - यात्रा में किस प्रकार सहायक है, इसका उल्लेख हुआ है। आचार्य कुन्दकुन्द ने तो अपने ग्रन्थों में ध्यान का प्रयोजन शुद्ध आत्मतत्त्व में अवस्थिति को माना है। उनका विवेचन निश्चय नय प्रधान है। दूसरे, वे स्वस्वरूप में अवस्थिति को ही ध्यान का लक्ष्य मानते हैं; ध्याता, ध्येय और ध्यान की त्रिपुटी के मूल में आत्मा को ही देखते हैं। उनके अनुसार आत्मा ही ध्याता है, शुद्ध आत्मतत्त्व ही ध्येय है और शुद्ध आत्म तत्त्व के स्वरूप में रमण करना ही ध्यान है। ध्याता, ध्येय 76. वही, गा. 49 77. वही, गा. 50-54 78. बृहद्रव्यसंग्रह 182-185 79. द्रव्यसंग्रह गा. 56 ~~mmmmmmmmmmmmm 24 cmmmmmmmmmmmmmm Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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