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खण्ड : द्वितीय
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जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम
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साथ उसके विधि-विधान का भी उल्लेख मिलता है। आध्यात्मिक पक्ष में आत्मअवस्थिति या आत्मरमण या आत्मसजगता को ही ध्यान कहा गया है । व्यवहार की अपेक्षा तो उन्होंने ध्यान के प्रकारों, लक्षणों, आलम्बनों और भावनाओं की चर्चा की है।
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