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________________ खण्ड : द्वितीय जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम है और इसीलिए सिद्धावस्था में जीव अक्रिय ही रहता है। बल्कि यों कहना चाहिए कि सर्वथा अक्रियदशा का नाम ही सिद्धि या मोक्ष है। इससे जो लोग ‘क्रियावान् रहते हुए भी मोक्ष हो जाता है' या 'सिद्ध जीव क्रिया करते हैं यह मानते हैं, उनका निरसन करना ही शास्त्रकार का आशय है। दशवैकालिक सूत्र के पंचम पिण्डैषणा अध्ययन में बताया है कि - साधु भिक्षा, आहार लेकर उपाश्रय में गुरु के समीप आकर गमनागमन की क्रिया का प्रायश्चित्त करने के लिए स्थिरचित्त होकर “इरियावहियाए" सम्पूर्ण सूत्र पढ़कर ध्यान करे। क्योंकि जब तक विधिपूर्वक ध्यान नहीं किया जायेगा तब तक अतिचारों की आलोचना नहीं हो सकेगी। इसलिए गमनागमन के बाद कायोत्सर्ग अर्थात् ध्यान करने का उल्लेख है।54 प्रस्तुत संदर्भ से यह स्पष्ट होता है कि साधु आहार लाते ही भोजन नहीं करे अपितु सर्वप्रथम विधिपूर्वक ध्यान करे। इसी संदर्भ में आगे बताया गया है कि “इरियावहियाए' ध्यान के अनन्तर ध्यान करता हुआ साधक क्या चिन्तन करे ? इस विषय में सूत्रकार (शय्यंभवाचार्य) ने बताया है कि - साधु भिक्षा लाने के पश्चात् गुरु के समक्ष कायोत्सर्ग करे, तब उस कायोत्सर्ग में गमनागमन (आने - जाने) की क्रिया करते समय तथा अन्न-पानी ग्रहण करते समय जो कोई अतिचार लगे हों, उन सबको सम्यक् प्रकार से स्मरण कर अपने विकार-शून्य हृदय में स्थापित करे। टीकाकार ने कहा है कि कायोत्सर्ग (ध्यान) की दशा में अविक्षिप्त चित्त होने से सभी वस्तुओं का विचार पूर्णरूपेण ठीक हो सकता है। अत: प्रत्येक वस्तु का विचार ध्यान वृत्ति से होना चाहिए। इसी अध्ययन में आगे बताया है कि जिन सूक्ष्म अतिचारों की सम्यक्तया आलोचना न हुई हो और जो पूर्व कर्म तथा पश्चात् कर्म अर्थात् जो पहले या पश्चात् काल में दोष लगा हो तो आलोचक साधु पुन: प्रतिक्रमण कर “गोयरचरियाएं" इत्यादि सूत्र का ध्यान करे और उसमें विस्मरण हुए अतिचारों का चिंतन करे। टीकाकार ने बताया है कि जब सम्यक् प्रकार से चिन्तन किया जायेगा तभी सर्व प्रकार से 54. वही, " " 5.88 55. वही, " " 5.89 ~~~~~~~~~~~~~~~ 37 ~~~~~~~~~~~~~~~ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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