SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खण्ड : द्वितीय जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम स्वीकार कर लिया। ध्यान से विशुद्धिप्राप्त साधक के व्यक्तित्व में कितनी प्रभावकता आ जाती है, यह इसका उदाहरण है।46 उत्तराध्ययन सूत्र के 26वें अध्ययन में श्रमणों की समाचारी - दिनचर्या का वर्णन हुआ है। उसके अन्तर्गत एकस्थान पर कहा गया है कि श्रमण दिन के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, द्वितीय प्रहर में ध्यान, तृतीय प्रहर में भिक्षाटन-भिक्षाचर्या करे तथा चतुर्थ प्रहर में पुन: स्वाध्याय करे।47 दिन की भाँति रात्रिचर्या के सम्बन्ध में कहा गया है कि श्रमण रात के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, द्वितीय में ध्यान, तृतीय में निद्रा और चतुर्थ में पुन: स्वाध्याय करे।48 जीवन दिवसों और रात्रियों का एक प्रलम्ब संकलन है। जीव द्वारा बद्ध आयुष्य के अनुरूप यह संकलन एक विशेष कालावधि तक विद्यमान रहता है। वैसे तो क्षण - क्षण का योग जीवन है। किन्तु स्थूल रूप में दिन और रात को उसकी इकाइयों के रूप में स्वीकार किया गया है। इसलिए साधु के लिए जब करणीयता का विषय निरूपित होता है तो दिनचर्या और रात्रिचर्या के रूप में ही उसे व्याख्यात किया जाता है। दिनचर्या या रात्रिचर्या में उन्हीं कार्यों को विशेष रूप में गृहीत किया जाता है जो जीवन में सर्वाधिक आवश्यक होते हैं, उपयोगी होते हैं और अनुप्रेक्षणीय होते हैं। आगमकार ने दिन को चार प्रहरों में विभक्त करते हुए जो चार मुख्य कार्य बताये हैं वे साधनामय जीवन के लिए सर्वथा अनिवार्य हैं। दिन और रात्रि दोनों के ही प्रथम प्रहर में आगमकार ने श्रमण के लिए स्वाध्याय करने का निर्देश दिया है। स्वाध्याय श्रुत के माध्यम से आत्मानुशीलन की वह उत्तम प्रक्रिया है जिससे जीवन में सत्संस्कार, शुभ भाव और सद् अध्यवसाय का उदय होता है। ये ही तो वे सत्त्व हैं जिनके आधार पर जीवन का यान भलीभाँति सफलतापूर्वक अपने लक्ष्य की ओर गतिशील रह सकता है। दिन और रात्रि के दूसरे प्रहर में जो ध्यान का विधान किया गया है वह 46. वही, 18.4-18 47. उत्तराध्ययन सूत्र 26.12 48. वही, 26.18 . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy