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________________ । श्रुतज्ञान प्रचार प्रसार के सशक्त साथी उदारचेत्ता श्रीमान् बालचन्द जी बैद - सौ. रूकमादेवी बैद, चैन्नई मानव जीवन की सार्थकता आध्यात्मोन्मुख पथ पर चरण बढ़ाने में है। जो भाग्य के भरोसे बैठकर समय का सदुपयोग नहीं करते उनका जीवन पानी के बुलबुले के सहश कव समाप्त हो जाता है पता ही नहीं चलता है। कुछ लोग विचारों की जाल में इतना अधिक उलझ जाते हैं कि निर्णय हीनता के शिकार हो • जाते है। दूसरी ओर ऐसे भी प्राणी है जो समय का सदुपयोग करते हुए स्वस्थ चिन्तन की दिशा में बढ़ते है वे समय के सरगम पर तप त्याग और शुभ भावों के गीत छेड़ते है। वे ही किस्मत के कारीगर कहलाते है। ऐसे ही किस्मत के कारीगर थे वीर वसुंधरा राजस्थान के नागौर जिले में बसे हुए 'डेह' ग्राम निवासी धर्मनिष्ठ श्रद्धावान सुश्रावक 'श्रीमान् बालचन्द जी बैद सौभाग्यवती रूकमादेवी बैद' आप चैन्नई महानगरी में फाइनेन्स का व्यापार करते थे। अपनी व्यवहार कुशलता, बुद्धि चातुर्य के बलबूते पर अपने व्यवसाय को विस्तृत बनाया । आपके रोम-रोम में श्रद्धा का निर्झर प्रवाहित था । आस्थावान श्रीमान् बालचन्द जी तथा धर्मप्रवृत्ति में सदैव अग्रसर सौ. रूकमादेवी दोनों की जोड़ी सचमुच ही विलक्षण थी। आपकी धार्मिक कार्यों में लगन, रूचि प्रशंसनीय थी। आप श्री सम्पन्न होते हुए भी आप में सहजता, व्यवहार में मधुरता, वचनों में सरलता तथा साधु-साध्वी जी की सेवा में उदारता एवं आस्था दृष्टिगोचर होती थी। सुश्राविका स्वाध्याय प्रेमी, समाजसेवी सौ. रूकमादेवी साहूकार पेठ महिला मण्डल की महामंत्री है। निरन्तर तप, साधना में आत्मतत्त्व को शुद्ध करते हुए सांसारिक जीवन में भी आराधना की रूढ़ियों पर कदम दर कदम आगे बढ़ रही है। आपकी जीवन बगिया में छ: पुष्प अंकुरित हुए। श्री सुरेश कुमार, सौ. विमलाजी, सौ. संगीता, सौ. सन्तोष, सौ. राजकुमारी एवं उषा कुमारी। अपनी सन्तानों को आपने संस्कार वैभव प्रचुर मात्रा में दिये। आपके संस्कार सिंचन का ही यह उपहार है कि आपकी सुपुत्री 'उषा' के मनोभूमि में वैराग्य बीज अंकुरित हुआ। वह वैराग्य का बीज 25 जनवरी 1981 में बहुश्रुत पंडितरत्न युवाचार्य श्री मिश्रीमल जी म. सा. 'मधुकर' के पावन मुखारविंद से दीक्षा मंत्र श्रवणकर संयम के तरू के रूप में परिवर्तित हुआ और उषा साध्वी उदितप्रभा के श्रमणवेश में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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