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9. जासु रग कोहु ण मोहु मउ जासु ग माय ण माणु । जासु ण ठाण झाणु जिय सो जि णिरंजणु जाणु ॥
10. प्रत्थि र पुण्णु ण पाउ जसु प्रत्थि रग हरिसु विसाउ । प्रत्थि रग एक्कु वि दोसु जसु सो जि णिरंजणु भाउ ॥
11. जासु प धारण धेउ रग वि जासु रग जंतु रण मंतु । जासु प मंडलु मुद्दा वि सो मुरिंग देउँ प्रतु ॥
12. वेयहिँ सत्यहिँ इंदियहिँ जो जिय मुरहु र जाइ । रिम्मल - कारणहँ जो विसउ सो परमप्पु राइ ||
13. जेहउ खिम्मलु ारणमउ सिद्धिर्हि विसइ देउ । तेहउ रिगवसs बंभु परु देहहँ मं करि भेउ ||
14. जें दिट्ठे तुति लहु कम्मइँ पुव्व - कियाइँ । सो परु जाणहि जोइया देहि वसंतु रग काइँ ॥
15. जित्थु रग इंदिय - सुह - दुहइँ जित्थु ण मरण-वावारु । सोप्पा मुरिण जीव तुहुँ अणु परि श्रवहारु !!
भैयाभेय-रगएण
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16. देहादेह हिँ जो वसइ सोप्पा मुरिण जीव तुहुं किं प्रणे" बहुएण ॥
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17. जीवाजीव म एक्कु करि लक्खरण भेएँ भेउ जो पर सो पर भरणमि मुणि अप्पा प्रप्पु प्रभेउ ॥
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[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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