SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 90 1 9. जासु रग कोहु ण मोहु मउ जासु ग माय ण माणु । जासु ण ठाण झाणु जिय सो जि णिरंजणु जाणु ॥ 10. प्रत्थि र पुण्णु ण पाउ जसु प्रत्थि रग हरिसु विसाउ । प्रत्थि रग एक्कु वि दोसु जसु सो जि णिरंजणु भाउ ॥ 11. जासु प धारण धेउ रग वि जासु रग जंतु रण मंतु । जासु प मंडलु मुद्दा वि सो मुरिंग देउँ प्रतु ॥ 12. वेयहिँ सत्यहिँ इंदियहिँ जो जिय मुरहु र जाइ । रिम्मल - कारणहँ जो विसउ सो परमप्पु राइ || 13. जेहउ खिम्मलु ारणमउ सिद्धिर्हि विसइ देउ । तेहउ रिगवसs बंभु परु देहहँ मं करि भेउ || 14. जें दिट्ठे तुति लहु कम्मइँ पुव्व - कियाइँ । सो परु जाणहि जोइया देहि वसंतु रग काइँ ॥ 15. जित्थु रग इंदिय - सुह - दुहइँ जित्थु ण मरण-वावारु । सोप्पा मुरिण जीव तुहुँ अणु परि श्रवहारु !! भैयाभेय-रगएण 1 16. देहादेह हिँ जो वसइ सोप्पा मुरिण जीव तुहुं किं प्रणे" बहुएण ॥ F 17. जीवाजीव म एक्कु करि लक्खरण भेएँ भेउ जो पर सो पर भरणमि मुणि अप्पा प्रप्पु प्रभेउ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only [ अपभ्रंश काव्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy