________________
पाठ-15
परमात्मप्रकाश
1. पुणु पुणु परमविवि पंच-गुरु भावे चित्ति धरेवि ।
भट्टपहायर रिणसुरिण तुहुँ अप्पा तिविहु कहेवि ॥
2. अप्पा ति-विह मुरणेवि लहु मूढउ मेल्लहि भाउ ।
मुरिण सणाणे गारणमउ जो परमप्प-सहाउ ॥ 3. मूढ वियक्खणु बंभु परु अप्पा ति-विहु हवेइ ।
देहु जि अप्पा जो मुणइ सो जणु मूदु हवेइ ॥ 4. देह-विभिण्णउ पारणमउ जो परमप्पु रिगएइ ।
परम-समाहि-परिट्ठियउ पंडिउ सो जि हवेइ ।। 5. अप्पा लद्धउ पाणम उ कम्म-विमुक्के जेण ।
मेल्लिवि सयलु वि दव्वु पर सो पर मुगहि मणेरण ॥
6. पिच्चु रिणरंजणु रणाणमउ परमारणंद-सहाउ ।
जो एहउ सो संतु सिउ तासु मुणिज्जहि भाउ ।
7. जो णिय-भाउ ण परिहरइ जो पर-भाउ रण लेइ ।
जाणइ सयलु वि रिगच्चु पर सो सिउ संतु हवेइ ॥
8. जासु रण वण्णु रण गंधु रसु जासु ण सद्दु रण फासु । ___ जासु ण जम्मणु मरणु ण वि गाउ रिणरंजणु तासु ॥
88 ]
अपभ्रंश काव्य सौरभ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org