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घत्ता - ( मैं ) गजसमूह को लूटूंगा, मारूँगा (प्रौर) योद्धाम्रों को रण-पथ में चूर-चूर करूँगा । राजा श्रावे, (अपने ) बाहुबल को मुझ बाहुबलि के आगे दिखाए ।
[1] तब दूत निज-नगर को गया और उस (नगर) में राजा के घर गया । ( उसके द्वारा ) बलरूपी सागर, पृथ्वी का ईश आदर सहित प्रणाम किया गया । उसने ( राजा को ) कहा - [2] हे देव ! हे नरेश्वर ! बाहुबलि खतरनाक ( है ) ( वह) स्नेह नहीं रखता है, ( किन्तु ) धनुष की डोरी पर बाण रखता है। [3] (वह) कार्य नहीं करता ( पर) कमर कसता है । ( वह ) संधि नहीं चाहता है, ( पर ) युद्ध चाहता है । [4] (वह) तुमको नहीं देखता है, (अपनी ) भुजाओं के बल को देखता हैं । ( वह ) ( तुम्हारी ) आज्ञा को नहीं पालता है, किन्तु अपनी दलील को पालता है । [5] (वह ) स्वाभिमान नहीं छोड़ता है, भय का भाव छोड़ता | ( वह ) प्रारब्ध को नहीं विचारता है, ( किन्तु ) पुरुषार्थ को विचारता है । [6] (वह ) शान्ति नहीं विचारता है, कुटुम्ब का झगड़ा विचारता है । ( वह ) पृथिवी नहीं देता है, (किन्तु) बाणों की पंक्ति देता है । [7] (वह) तुमको प्रणाम नहीं करता है, मुनिसमूह को प्रणाम करता है । (वह) अंग को नहीं खींचता है ( किन्तु ) तलवारों को खींचता है । [8] हे देव ! भाई तुम्हें पोदनपुर नहीं देगा । किन्तु ( मैं ) जानता हूँ (वह) ( तुम्हे ) रणरूपी भोजन देगा । [9] (वह) रत्नों और हाथीरूपी रत्नों को (तुमको) भेंट नहीं करेगा । ( वह) निश्चितरूप से मनुष्य के छातीरूपी रत्नों को भेंट करेगा ।
16.22
धत्ता - ( वह) वंश, कुलाचार, गुरु के द्वारा कथित क्षत्रियधर्म को नहीं समझता है । ( वह ) मर्यादारहित, इर्ष्यालु, समानगोत्रीय (भाई) अवश्य ही युद्ध करेगा ।
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
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