SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेहि भणिय ते विरण उ करेप्पिणु सामिसालतणुरुह पवेप्पिणु ॥2 सुरणरविसहरभयई जणेरी करहु केर गरणाहहु केरी ।। 3 परणवहु कि बहुएण पलावें पुहइ ण लब्भइ मिच्छागावें ॥4 तं णिसुणेवि कुमारगणु घोसइ ' तो पणवहुं जइ वाहि ण दोसइ ॥5 तो पणवहुं जइ सुसुइ कलेवरु तो पणवहुं जइ जीविउ सुंदर ॥ 6 तो पणवहुं जइ जरइ रण झिज्जइ तो परणवहुं जइ पुट्ठि ण भज्जइ ।।7 तो पणवहुं जइ बलु पोहट्टइ तो पणवहुं जइ सुइ ण विहट्टइ ॥8 तो पणवहुं जइ मयणु ण तुट्टइ तो पणवहुं जइ कालु र खुट्टइ ॥9 कंठि कयंतवासु ण चुहुट्टइ तो पणवहुं जइ रिद्धि ण तुट्टइ ॥10 पत्ता -- जइ जम्मजरामरणई हरइ चउगइदुक्खु णिवारइ । तो पणवहुं तासु परेसहो जइ संसारहु तारइ ॥1॥ 16.8 पुणरवि तेहिं गहिरयं सवरणमहुरयं एरिसं पउत्तं । प्राणापसरधारणे धरणिकारणे पणविउं जुत्तं ॥1 पिडिखंडु महिखंडु महेप्पिणु किह पणविज्जइ माणु मुएप्पिणु ॥2 वक्कलणिवसणु कंदरमंदिर वणहलभोयणु वर तं सुंदर ॥3 वर दालिदु सरीरहु दंडणु णउ पुरिसहु अहिमागविहंडणु ॥4 परपयरयधूसर किंकरसरि असुहाविरिण णं पाउससिरिहरि ॥5 णिवपडिहारदंडसंघट्टणु को विसहइ करेण उरलोट्टणु ॥6 को जोयइ मुहं भूभंगालउ कि हरिसिउ कि रोसें कालउ ॥7 36 ] अपभ्रंश काव्य सौरम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy