________________
पाठ-5
पउमचरिउ सन्धि-83
83.2 पत्ता-'एत्तडउ दोसु पर रहुवइहै जं परमेसरि पाहिँ घरै।
मपमायहि लोयहुँ छन्दरण प्राणेंवि का वि परिक्ख करें॥9
-
833
तं रिणसुणेवि चवइ रहुणन्दणु 'जाणमि सीयह तणउ सइत्तणु ॥1 जाणमि जिह हरि-वंसुप्पणी जाणमि जिह वय-गुण-संपण्णी ॥2 जाणमि जिह जिरण-सासणे भत्ती जाणमि जिह महु सोक्खुप्पत्ती ॥3 जा अणु-गुण-सिक्खा-वय-धारी जा सम्मत्त-रयण-मरिण-सारी ॥4 जाणमि जिह सायर-गम्भीरी जारणमि जिह सुर-महिहर-धीरी ॥ 5 जारणमि अंकुस-लवरण-जणेरी जाणमि जिह सुय जरणयहाँ केरी।।6 जागमि सस भामण्डल-रायहाँ जागमि सामिरिण रज्जहाँ प्रायहाँ ॥7 जाणमि जिह अन्तेउर-सारी जाणमि जिह महु पेसण-गारी ॥8
धत्ता-मेल्लेप्पिणु णायर-लोऍण महु घरै उब्भा करेंवि कर ।
जो दुज्जसु उप्पर घित्तउ एउग जाणहाँ एक्कु पर' ॥9
83.4
तहि अवसर रयणासव-जाएं
कोक्किय तियड विहीसण-राएं ॥1
28 ]
अपभ्रंश काव्य सौरभ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org