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सुग्रीव और हनुमान पुष्पक विमान में सीता को लेने के लिए रवाना हुए। वे पुण्डरीक नगर में पहुँचे । सब वहाँ सीता देवी को सकुशल देखकर बहुत प्रसन्न हुए। वे सीता की जय-जयकार करते हुए लवण व अंकुश की वीरता का बखान करने लगे और कहने लगे- अब तुम्हारे बुरे दिन समाप्त हुए, अब अयोध्या चलिए । पति व देवर तथा पुत्रों से मिलकर प्रानन्दपूर्वक निवास कीजिए ।
83.6 अयोध्या वापस जाने की बात सुनकर सीता विह्वल हो जाती है और भर्रायी आवाज में कहती है- मेरे सामने कठोर हृदय राम का नाम मत लो। मुझ निर्दोष को राम ने ऐसे भयंकर जंगल में छुड़वा दिया जहाँ यम और विधाता भी अपने प्रारण छोड़ देता है । प्रब विमान भेजने से कोई मतलब नहीं । दृष्ट (चुगलखोर) लोगों के कहने से ( राम ने ) मुझे जो दुःख दिया है, वह कभी नहीं मिट सकता ।
83.8,9 इस प्रकार पहले तो सीता अयोध्या जाने से मना करती है परन्तु फिर सभी का विशेष अनुरोध देखकर सीता कोशलनगर आ जाती है । सारा नगर जब सीता को देखकर सन्तोष की सांस ले रहा था, जयघोष कर रहा था, उस समय सीता ने राम को जो कुछ कहा वही सब प्रस्तुत पद में वर्णित है ।
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
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