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________________ जाण (जाण) विधि 2/[ सक जानो 10. अस्थि है पुण्णु पुण्य पाउ जसु अस्थि पाप जिसमें है नहीं हरिसु विसाउ अस्थि हर्ष शोक अव्यय अव्यय (पुण्ण) 1/1 अव्यय (पाअ) 1/1 (ज) 6/1 स अध्यय अव्यय (हरिस) 1/1 (विसाअ) 1/1 अव्यय अव्यय (एक्क) 1/I वि अव्यय (दोस) 1/1 (ज) 6/1 स (त) 1/1 सवि अव्यय (णिरंजण) 1/1 कि (माअ) 1/1 नहीं दोसु भी दोष जिसमें जसु सो वह निष्कलंक णिरंजण भाउ 11. जासु जिसके लिए नहीं अवलम्बन उद्देश्य धारणु नहीं आसु जिसके लिए (ज) 4/1 स अव्यय (धारण) 1/1 (अ) 1/1 अव्यय अव्यय (ज) 4/1 स अव्यय (जंत) 1/1 अव्यय (मंत) 1/1 (ज) 4/1 स अव्यय (मंडल) 11 जंतु यंत्र मत्त मन्त्र जिसके लिए जासु नहीं मंडलु प्रासन 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है(हे.प्रा.व्या. 3-134)। 178 ] [ अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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