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जुत्तउ
दिसिहि खंडई दोणि करेवि
अव्यय (जुत्तअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वाथिक (दु)16/2 वि (दिसि) 7/2 (खंड) 2/2 (दो) 2/- वि (कर+एवि) संकृ
नहीं जोत दिया गया दो (में) दिशाओं में विभाग दो करके
6. कमलई
मेल्लवि अलि उलई करि-गंडाई महन्ति असुलह-मेच्छण
(कमल) 2/2 (मेल्ल+अवि) संकृ (अलि) 6/2 (उल) 1/2 [(करि)-(गंड) 2/2] (मह) व 3/2 सक [(असुलह)+ (एन्छण)] (असुलह) 2/1 वि (एच्छण) 2/1 वि (ज) 6/2 स (भलि ) 1/1 (दे) (त) 1/2 स अव्यय अव्यय (दूर) 2/1 वि (गण) व 3/2 सक
कमलों को छोड़कर भंवरों के समह हाथियों के गंडस्थलों को इच्छा करते हैं, चाहते हैं असुलभ, लक्ष्य को जिनका कदाग्रह
जाहं भलि3
नहीं बिल्कुल
दूर गणन्ति
मानते हैं
7. जीविउ
कासु
जीवन किसके लिए
नहीं
वल्लहउं
प्रिय
धणु
(जीविअ) 1/1 (क) 4/1 स अव्यय (वल्लहअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक (धरण) 1/1 अव्यय (क) 4/1 स अव्यय (इट्ठ) भूकृ 1/1 अनि (दो) 2/2 वि
पुण
कासु
धन भी किसके लिए नहीं प्रिय दोनों को
दोणि
1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है(हे.प्रा.व्या. 3-134) । 2. एच्छण (वि) लक्ष्य को (हेम प्राकृत व्याकरण, कोष सूची पृष्ठ 25)। 3. भलि-कदाग्रह ।
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
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