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करेवि चिर-देह-वेसु
(कर+एवि) संकृ [(चिर) वि-(देह)-(वेस) 2/1]
बनाकर पुरानी देह के वश को
निकट प्राकर कहकर मधुर वचन
12. रिणयडउ
प्राविवि जंपिवि सुवाय कि कंदहि रोवहि मजा माय
(रिणयडअ) 2/1 'अ' स्वार्थिक (आव+इवि) संकृ (जंप+ इवि) संकृ (सुवाया) 2/1 अव्यय (कंद) व 2/1 अक (रोव) व 2/1 अक (अम्ह) 6/1 स (माया) 8/1
क्यों
कन्दन करती हो रोती हो मेरो है माता
13. हउँ
जीवमाणु
जीता हुआ (जोचित) मेरे देखो मुखको
णियहि
(अम्ह) 1/1 स (जीव) व 1/1 (अम्ह) 6/1 स (णिय) विधि 2/1 सक (वत्त) 2/1 (अम्ह) 1/1 स (अकयपुण्ण) 1/1 (णाम) 3/1 (पुत्त) 1/1
वस्तु
अकयपुण्णु णामेण पुत्तु
अकृतपुण्य नाम से
पुत्र
14. मोहाउर
मोह से पीड़ित
णिसुरिणवि बयप सिग्घु रिगच्छा जारिणउ
[(मोह)+(आउर)] [(मोह)-(आउर→आउरा) 1/1 वि] (रिणसुण+इवि) संक (वयण) 2/1 अव्यय (णिच्छ+इ) संकृ (जाण+इउ) संकृ (अम्ह) 6/1 स
सुनकर वचन को शीघ निश्चय करके जानकर
महु
मेरा
(सुअ) 1/1 (अणग्ध) 1/1 वि
पुत्र उत्तम
प्रगग्घु
15. मेल्लिवि
कर-चरणई
(मेल्ल+इवि) संकृ [(कर)-(चरण) 2/2] [(बहु) वि-(दुह)-(करण) 2/2 वि] (धा+इवि) संकृ
छोड़कर हाथों और पैरों को बहुत दुःख को उत्पन्न करनेवाले दौड़कर
बहुदुहकरणई
बाइवि
अपभ्रंश काच्य सौरम ]
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