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________________ बैठता हूँ (बैठा) णिवसमि ता सिंघण तब सिंह के द्वारा मारा गया (रिणवस) व 1/1 अक अव्यय (सिंघ) 3/1 (हअ) भूकृ 1/1 अनि (अम्ह) 1/ स (सुरवर) 6/1 (जा→जायअ) भूकृ 1/1 'अ' स्वार्थिक अव्यय (वि-बअ)12/1 सुरवर जायउ चिय विवउ श्रेष्ठ देव का पाया पादपूरक विशिष्ट पद 9. मुणिवयरपसाएँ दुक्खभरु छिदिवि खणि जायउ सुक्खघर [(मुरिण)-(वयण)-(पसाअ)3/1] [(दुक्ख)-(भर) 2/1] (छिंद+ इवि) संकृ (खण) 7/1 (जा→जायअ) भूकृ 1/1 'अ' स्वार्थिक [(सुक्ख)-(घर) 2/1] मुनि के वचन के प्रसाद से दुःख के बोझ को काटकर क्षण में गया सुख के घर को 10. एत्तहिं तहट मायरि दुहभरिया महदुक्खें खविय विहावरिया अव्यय (त) 6/1 स (मायरि) 1/1 [(दुह)-(भर→भरिय→भरिया) भूकृ 1/1] [(मह) वि-(दुक्ख) 3/1] (खव→खविय→खविया) भूकृ 1/1 (विहावरीय) 1/I 'य' स्वार्थिक इधर उसकी माता दुःख से भरी हुई अत्यन्त कष्ट से बितायी गई रात्रि सुप्पहाए सयल (उपस्थित) होकर सुप्रभात में सब ही (हु) संकृ (सुप्पहाअ) 7/1 (सयल) 1/2 वि अव्यय (मिल) भूक 1/2 अव्यय (जणणी) 3,1 अव्यय मिलिया सहुँ जरपरिणए मिले साथ माता के पादपूरक 1. वअ→वय-पद। 2. षष्ठी विभक्ति के लिए 'ह' प्रत्यय का भी प्रयोग होता है (श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 150)। 154 ] । अपभ्रश काव्य सौरम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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