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1. हउँ
वीसरइ
केम
हियउ
3.
4.
होंड
दुख-दालिद्द - जडिउ पुष्यक्किय
2. रिपबंधउ
दुक्करण
णडिउ
छुह- तिस-संभरिउ
अणणिए
सह
देसंतर
फिरिउ
थक्कइ
असोय-माम
जि
घरि
ह
ग्रत्थि
पवट्टिउ
तह
पवरि
मइ
दाणु
पदिउँ
मुणिवरहु 3
सह
( वीसर) व 3 / 1 सक
अव्यय
( हियअ ) 1 / 1
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3.19
( अम्ह) 1 / 1 स
(हो होंत होंतअ ) वकृ 1/1 'अ' स्वा.
[ ( दुक्ख ) - ( दालिद्द) - ( जडिअ ) भूकृ 1 / 1 अनि
[ ( पुब्व) वि - ( क्किय ) 1 भूकृ 3 / 1 अनि ]
( दुक्कम) 3 / 1
(ड) भूकृ 1 / 1
(रिधअ) 1 / 1 वि
[ ( छुहा छुह ) 2 - ( तिस ) - ( संभर) भूकृ 1 / 1]
( जगणी ) 3 / 1
अव्यय
(देसंतर) 2/1
(फिर) भूकृ 1 / 1
( थक्कअ ) दे. 7 / 1 'अ' स्वार्थिक
[ ( असोय) वि - (माम ) 6 / 1 ]
अव्यय
(घर) 7/1
( अम्ह) 1 / 1 स
(स) व 1 / 1 अक
( पवट्ट) भूकृ 1 / 1
(त) 7/1 सवि
(पवर) 7 / 1 वि
( अम्ह ) 3 / 1 स
(दाण) 1 / 1
( प दिअ ) भूकृ 1 / 1 अनि 'अ' स्वार्थिक ( मुणिवर) 4 / 1
अव्यय
मूलता है (भूलेगा )
कैसे
हृदय
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मैं
होता हुआ
] दु:ख-दरिद्रता से युक्त
पूर्व में किए हुए दुष्कर्म के द्वारा
नचाया गया
धन्धेरहित भूख-प्यास सहित
माता के
साथ
विदेश में फिरा
समय
अशोक मामा के
पादपूरक
घर में
मैं
रहा
प्रवृत्त हुप्रा
उस
श्र ेष्ठ
मेरे द्वारा
दान
दिया गया
1. कभी-कभी तृतीया के लिए शून्य प्रत्यय का प्रयोग पाया जाता है ( श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 147 ) ।
श्रेष्ठ मुनि के लिए
साथ
2. कभी-कभी समास में दीर्घ का ह्रस्व हो जाता है ।
3. चतुर्थी एवं षष्ठी पु. नपु. एकवचन में 'हु' प्रत्यय का प्रयोग भी होता है ( श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 150)
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[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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