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28.1
पसरइ मेह-विन्दु गयणङ्गणे पसरइ जेम तिमिरु अण्णाणहों पसरइ जेम पाउ पाविट्ठहों पसरइ जेम जोण्ह मयवाहहो. पसरइ जेम चिन्त धण-हीरगहों पसरइ जेम सदद सर-तूरहों पसरइ जेम दवग्गि वणन्तरे तडि तडयडइ पडइ घणु गज्जइ
पसरइ जेम सेण्णु समरङ्गणे ॥1 पसरइ जेम धुद्धि वहु-जाणहाँ ॥2 पसरइ जेम धम्मु धम्मिट्ठहों ॥3 पसरइ जेम कित्ति जगणाहहाँ ॥4 पसरइ जेम कित्ति सुकुलीणहाँ ॥5 पसरइ जेम रासि-रगहै सूरहों ॥6 पसरइ मेह-जालु तिह अम्वर ।। 7 जारगइ रामहाँ सरणु पवज्जइ ॥8
घत्ता-अमर-महाधणु गहिय-करु मेह गइन्दै चहुँ वि जस-लुद्धउ ।
उप्परि गिम्भ-रणराहिवहाँ पाउस-राउ पाइँ सरणद्धउ ॥9
28.2
जं पाउस-परिन्दु गलगज्जिउ धूली-रउ गिम्भेरण विसज्जिउ ॥1 गम्पिणु मेह-विन्दै अालग्गउ तडि-करवाल-पहारे हिँ भग्गउ ॥2 जं विवरम्मुह चलिउ विसालउ उट्ठिउ ‘हणु' भणन्तु उण्हालउ ॥3 धगधगधगधगन्तु
उद्धाइउ । हसहसहसहसन्तु संपाइउ ॥4 जलजलजलजलजल पचलन्तउ जालावलि फुलिङ्ग मेल्लन्तउ ॥5 धूमावलि-धयदण्डुब्भप्पिण
वर-वाउल्लि-खग्गु कप्पिणु ॥6 ਮਫਲਸਫੇ ਵਰੁ पहरन्तउ तरुवर-रिउ-भड-थड भज्जन्तउ ॥7 मेह-महागय-घड विहडन्तउ जं उण्हालउ दिठ्ठ भिडन्तउ ॥8
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| अपभ्रंश काव्य सौरभ
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