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माणइ
ण
इठ्ठ
24. यियबलेण
वंचइ
प्रवर
वि
सो
छलेण
25. भयकूवि
छूढ़
णउ
गिद्दभुक्खु
पावेइ
मूढ़
26. पद्धडिय
एह
सुपसिद्धी
गामें
विज्जलेह
27. पावेज्जइ
बंधेवि
रिगज्जइ
वित्वारेवि
रहे 2
चच्चरे
दंडिज्जह
तह
खंडिज्जह
मारिज्जह
पुरवाहिरे
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
( माण ) व 3 / 1 सक
अव्यय
( इट्ठ) भूकृ 1 / 1 अनि
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[ ( णिय) वि- (भुय) - (बल) 3 / 1 ]
(वंच) व 3 / 1 सक
(त) 2 / 2 स (अवर) 2/2
अव्यय
(त) 1 / 1 सवि
(छल) 3/1
[ (भय) - ( कुव ) 7 / 1 ] (छूट) 1 / 1 वि
अव्यय
[ ( णिद्द) - (भुक्ख ) 2 / 1]
(पाव) व 3 / 1 सक ( मूढ ) 1 / 1 वि
(पद्धडिया ) 1 / 1 (एआ) 1 / 1 सवि
( सुपसिद्धि) 1/1
( णाम) 3/1
(विज्जलेहा ) 1 / 1
(पाव) 1 व कर्म 3 / 1 सक
(बंध + एवि ) संक
(णी) व कर्म 3 / 1 सक
( वित्थार + एवि ) संकृ
(रह) 7/1
( चच्चर) 7/1
(दंड) व कर्म 3 / 1 सक
अव्यय
1. प्र-आप् पाव पकड़ लेना (आप्टे, संस्कृत - हिन्दी कोश ) ।
2. टिप्पण, सुदंसणचरिउ, 2.10, पृष्ठ 268
(खंड) व कर्म 3 / 1 सक
( मार ) व कर्म 3 / 1 सक
[ ( पुर ) - ( वाहिर ) 7 / 1वि ]
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मानता है
नहीं श्रादरणीय
निज भुजाओं के बल से
ठगता है
उनको
दूसरों को
भो
वह
जालसाजी से
संकटरूपी कुए में
उपेक्षित
नहीं
निद्रा और भूख को
पाता है
मूढ़
पद्धडिया छंद
यह
ख्याति
नाम से
विद्युल्लेखा
पकड़ा जाता है बांधकर
ले जाया जाता है
फैलाकर
चौराहे पर
मुख्यमार्ग पर
दंडित किया जाता है
तथा
काटा जाता है।
मारा जाता है।
शहर के बाहरी भाग में
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