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सवरा
शबरों का ही
hot
चाहे
(सवर) 1/2 अव्यय अव्यय (त) 1/1 सकि (त) 1/2 सवि अव्यय (हण) व 3/2 सक
वह
नहीं मारते हैं
हरांति
20. वणे
तिरण चरंति णिसुरणेवि
(वण) 7/1 (तिरण) 2/1 (चर) व 3/2 सक (णिसुण+एवि) संकृ (खड्डकअ) 2/1 अव्यय (डर) व 3/2 अक
वन में घास चरते हैं सुनकर खड़खड़ आवाज निश्चित डर जाते हैं
खड्डकउ
णिक डरंति
21. वरणमयउलाई
[(वण)-(मय)-(उल) 2/2]
किह
बन में रहनेवाले मगों केसमूह को क्यों मारता है
अव्यय (हण) व 3/1 मक (मूढ) 1/1 दि (कि→किअ) भूक 1/1 (त) 3/2 स (कि) 1/1 स
किउ तेहिं तेहिं काई→काई
किया गया उनके द्वारा क्या
22. पारद्धिरत्तु
चक्कवइ णरए गउ बंभयत्तु
[(पारद्धि)-(रत्त) भूक 1/I अनि] (चक्कवइ) 1/1 (णरअ) 7/1 (गअ) भूकृ 1/1 अनि (बंभयत्त) 1/1
शिकार का प्रेमी चक्रवर्ती नरक में (को) गया ब्रह्मदत्त
23. चल
चोर धि? गुरुमायबप्पु
(चल) 1/1 वि (चोर) 1/1 (धिट्ठ) भूक 1/1 अनि [(गुरु)-(माया)2-(बप्प) 2/1]
चंचल चोर निर्लज्ज गुरु, मां और बाप को
1. कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हे.प्रा.व्या. 3-135)। 2. माया→माय, समासगत शब्दों में रहे हुए स्वर परस्पर में दीर्घ के स्थान पर ह्रस्व हो जाते हैं (हेम प्राकृत
व्याकरण 1-4)।
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[ अपभ्रंश काव्य सौरम
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