SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ घत्ता - वरि पहरिउ वरि किउ तवचरणु वरि विसु हालाहलु वरि मरणु । aft foछ गम्पणु गुहिल - वर णवि रिगविसु विणिवसिउ प्रवहणे ॥ 9 तो तिणि वि दिर- पच्छिम - पह वित्यिष्णु गुरु वेसु वुक्करण - किसलय रण्णु करे वि वरण- कुक्कुड पियमाहवियउ सो तरुवरु 14 ] पाठ 3 पउमचरिउ सन्धि-27 27.14 पइसन्ति Jain Education International एम चवन्ताइँ विणिग्गयाइँ जाव सुन्दर-सराइँ रवन्ति श्रायरन्ति लवन्ति गुरु- गरगहू- समाणु क- क्का कुक्कू को - क्कउ 27.15 उम्माहउ जगहों जरगन्ताई ॥ 1 कुञ्जर इव विउल-वरणहो गयाइँ || 2 गग्गोहु महादुमु दिट्ठ ताव 113 गं विहय पढाव क्राइँ || 4 वाउलि- विहङ्ग कि क्की भणन्ति ॥ 5 to वि कलावि के वकइ चवन्ति ॥ 6 कंका वप्पीह फल-पत्त-वन्तु धत्ता-पइसन्तहिं प्रसुर- विमरणेहिं सिरु सामेंवि राम-जगह हिं । परिश्रविदुमु दसरह - सुऍहिँ श्रहिणन्दिउ मुरिण व सई भु ऍहिं ॥ 9 समुल्लवन्ति 117 प्रक्खर - रिहाणु ॥ 8 सन्धि - 28 सीय स-लक्खणु दासरहि तरुवर-मूले परिट्ठिय जावेंहिँ । पसरइ सु-कहें कव्वु जिह मेह-जालु गयणङ्ग तावेंहिँ ॥ For Private & Personal Use Only [ अपभ्रंश काव्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy