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मज्झे
(त) 1/1 सवि (मज्झ)7/1 (समुद्द) 6/1
समुद्दहो.
भीतर (अन्दर) समुद्र के
घाहावइ
तरियह
दोहरगिर हा-हा जाणवत्तु किज्जउ थिर
(धाहाव) व 3/1 अक (तर→तरिय) भूक 4/1 [(दीहर) वि-(गिर) 2/1] अव्यय (जाणवत्त) 1/1 (कि→किज्ज) विधि कर्म 3/1 सक (थिर) 1/1 वि
हाहाकार मचाता है (मचाया) तैरे हुए (लोगों) के लिए ऊंची प्रावाज प्ररे, अरे जहाज किया जाए स्थिर
8.
गिरा यहाँ
निवडिउ एत्यु रयणु अवलोयहो
(निवड→निवडिअ) भूक 1/I अव्यय (रयण) 1/1 (अवलोय) 4/1 (त) 2/1 स (आण+एवि) संकृ अव्यय (अम्ह) 4/1 (ढोय) 8/2 वि (दे)
आणेवि
अवलोकन के लिए उसको लाकर फिर मेरे लिए हे उपस्थित (लोगों)
पुणुवि
होयहो
9. सायरे
न? वहंतहो। पोबहो।
(सायर) 7/1 (नट्ठ) भूकृ 1/1 अनि (वह→वहंत) वक 6/1 (पोय) 6/1 अव्यय (लगभइ) व कर्म 3/1 सक अनि (माणिक्क) 1/1 (पलोय) 8/2
सागर में लुप्त हुमा चलते हुए जहाज में कहाँ प्राप्त किया जाता है (जाएगा)
नभइ
मारिणक्कु
पलोयहो
हे देखनेवाले (मनुष्यों)
यह
10. इय
मणुयजम्म मारिणक्कसम रइसुहनिद्दावसजायभम
(इअ) 1/1 सवि [(मणुय)-(जम्म) 1/1]
मनुष्य जन्म [(माणिक्क)-(सम) 1/1 वि]
रत्न के समान [(रइ)-(सुह)-(निद्दा)-(वस)-(जाय) भूकृ- रतिसुखरूपी निद्रा के वश में (भम)1/1]
हुप्रा भ्रमण
1. कमी-कभी षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पंचमी विभक्ति के स्थान पर पाया जाता है (हे.प्रा.व्या. 3-134)।
110 ]
। अपभ्रंश काव्य सौरभ
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