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________________ सरण जिरणयंदहु 11. संघट्टमि लुट्टमि घड दलमि सुहड ररणमग्गड पहु प्रावउ दावउ बाहुबल मह बाहुबल प्रग्गड 1. ar E c उ विणिग्गओ रियपुरं गनो तम्मि णिवरणवासं सो विores सायरं सारसायरं परपविडं महीसं 2. विसमु देव बाहुबलि णरेसद अपभ्रंश काव्य सौरम } ( सरण) 2 / 1 ( जिरगयंद ) 6 / 1 Jain Education International ( संघट्ट) व 1 / 1 सक (लुट्ट) व 1 / 1 सक [ ( गय ) - (घडा) 6 /2] ( दल) व 1 / 1 सक ( सुहड ) 2/2 [ ( रण ) - ( मग्गअ ) 7/1 'अ' स्वार्थिक ] ( पहु) 1 / 1 (आव) विधि 3 / 1 सक ( दाव) विधि 3 / 1 सक ( बाहुबल) 2 / 1 ( अम्ह ) 6 / 1 स (argafa) 6/1 अव्यय अव्यय ( दूअ ) 1/1 ( विणिग्गअ ) भूकृ 1 / 1 अनि [ ( गिय) वि- (पुर) 2 / 1] ( अ ) भूकृ 1 / 1 अनि 16.22 (a) 7/1 = [ (वि) - ( शिवास) 2 / 1] (त) 1 / 1 स ( विष्णव) व 3 / 1 सक ( सायर) 1 / 1 वि [ ( सार ) - ( सायर) 1 / 1] ( परणव परणविअ ) भूकृ 1 / 1 ( महीस ) 1 / 1 ( विसम) 1 / 1 (देव) 8 / 1 ( बाहुबलि ) 1/1 ( णरेसर ) 8/1 शरण को जिनदेव को For Private & Personal Use Only मारता हूँ ( मारूंगा) लूटता हूँ (लूटूंगा) गजसमूह को चूर-चूर करता हूँ (करूँगा) योद्धानों को रगपथ में राजा श्राव दिखाए बाहुबल को मुझ बाहुबलि के आगे तब दूत गया निजनगर को 1. कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हे. प्रा.व्या. 3-134 ) । 2. श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 151 । गया वहाँ पर राजा के घर वह / उसने कहता है ( कहा ) श्रादरसहित बलरूपी सागर प्रणाम किया गया पृथ्वी का ईश खतरनाक देव बाहुबलि हे नरेश्वर [ 87 www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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