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वर मरण
श्रेष्ठ मरण नहीं जीवन
जीविउ
(वर) 1/1 वि (मरण) 1/1 अव्यय (जीविअ) 1/1 (एहअ) 1/1 वि (दूय) 8/1 अव्यय (अम्ह) 3/1 स (भाव) भूकृ 1/1
ऐसा
दूय सुठ्ठ
हे दूत सचमुच मेरे द्वारा विचारा गया
मई
भाविउ
आवे
8. आवउ
भाउ घाउ
भाई
तह
दंसमि संझाराउ
(आव) विधि 3/1 सक (भाअ) 1/1 (घास) 2/1 (त) 6/1.स (दस) व 1/1 सक (संझाराअ) 1/1 अव्यय (खरण) 7/1 (विद्धंस) व 1/1 सक
घात को उसके दिखाता हूँ (दिखाऊंगा) संध्याराग की तरह एक क्षरण में नष्ट करता हूँ(नष्ट कर दूंगा)
खणि विद्धंसमि
9. सिहिसिहाहं।
देविदु वि
अग्नि की ज्वालानों को देवेन्द्र भी नहीं सह सकता है
सहइ
[(सिहि)-(सिहा)6/2] (देविंद) 1/1 अव्यय अव्यय (सह) व 3/1 सक (अम्ह)6/1 स (मणसिय)6/1 (विसिह) 2/2 (क) 1/1 सवि (विसह) व 3/1 सक
मरगसियह विसिह को विसहइ
कामदेव के बाणों को कोन सहता है (सहेगा)
10. एक्कु
एक
परउव्याव
(एक्क) 1/1 वि अव्यय [(पर) वि-(उव्वार) 1/1] (णरिंद) 6/1 अव्यय (पइसर) व 3/1 सक
परम-मलाई राजा की
रिंदद
यदि
पइसरइ
जाता है (चला जाय)
1. कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हे.प्रा.व्या. 3-134)।
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[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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