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नंपिएण
(जंपिअ) भूक 3/1
राउ
तुहुप्परि
वग्गइ करवालाह सूहि सव्वलहि परइ रणंगणि लम्ग
हराअ) 1/1 [(तुह) + (उप्परि)]तुह (तुम्ह) 6/1 स उप्परिः= अव्यय (वग्ग) व 3/1 अक (करवाल) 3/2 (सूल) 3/2 (सव्वल) 3/2 (पर) व 3/1सक
(रण)+ (अंगणि)[(रण)-(अंगण)7/1] (लम्गअ) भूकृ7/1 अनि 'अ' स्वार्थिक
प्रलाप किया हुआ होने के कारण राजा तुम्हारे, . ऊपर चौकड़ो भरेगा (कूदता है) तलवारों के साय त्रिशूलों के साथ बछों के साथ भ्रमण करता है (करेगा) रण के आंगन में निकटवर्ती
16.21
1.
ता भणियं स-हेउणा मयरकेउणा
तब कहा गया युक्तिसहित कामदेव के द्वारा
यहाँ
कहीं
कहि मि जाया
भी
अव्यय (भण→भणिय) भूकृ 11 (स-हेउ) 3/1 वि (मयरकेउ) 3/1 अव्यय अव्यय अव्यय (जाय) भूकृ 1/2 अनि (ज) 1/2 सवि [(पर) वि-(दविण)-(हारी) 1/2 वि] (कलहकारी) 1/2 वि (त) 1/2 मवि (जय)7/1 (राय) 1/2
परदविरणहारिणो कलहकारिणो
परद्रव्य को हरनेवाला कलह करनेवाले (कलहक.रो)
जयम्मि
जगत में
राया
राजा
2. वुड्डउ
जंबुङ सिव सद्दिज्जइ एण
(वुड्डअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक (जंबुअ) 1/1 'अ' स्वार्थिक (सिव) 1/1 (सद्द) व कर्म 3/ सक (एअ) 3/1 स अव्यय (अम्ह) 4/1 स (हासअ) 1/1 'अ' स्वार्थिक (दा-+इज्ज) व कर्म 3/1 सक
सियार समृद्धि बुलाई जाती है इससे मानो मेरे लिए हँसो दी जाती है
गाई
महु
हासउ दिज्जइ
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[ अपभ्रंश काव्य सौरम
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