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दालिदु
सरीरहु
दंडण
उ
पुरिसह हिमादिहंडण
5. परफ्बरयधूसर
8.
feकरसरि
असुहाfवरिष
णं
परिहरि
6. विपडिहारदंडसंघट्टण
को
विसहर
करेण
उरलोट्ट
7. को
བྲཱཝཱམཏྟཱཝ ཏྠཱཡཝཱ།
पहु श्रासण्णु
लहइ
धिट्ठत्तणु
पविरलदंसणु
हत्त
अपभ्रंश काव्य सौरभ 1
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(दलिद्द) 171
( सरीर) 4 / 1
(दंडण ) 1/4
अव्यय
( पुरिस ) 6 / 1
( अहिरण) - (विहंडण ) 1/13
[ ( पर) वि- ( पय) - (रथ) - ( धूसर घूसरा ) 1 / 1 वि}
[ ( किंकर ) - ( सरि) 1/11
( असुहाविरणी) 1/1 वि
अव्यय
[ ( पाउस ) - (सिरिहर सिरिहरी ) 111 वि]
(क) 1 / 1 सवि
(वि- सह ) व 3 / 1 सक
(कर) 3 / 1
[ ( उर) - ( लोट्टण ) 1 / 1]
(क) 1 / 1 सवि ( जोय) व 3 / 1 सक
अच्यय
[ (भू) + (भंग) + (आलउ ) ] [ ( भू ) - (भंग) - ( आलअ ) 2 / 1]
अव्यय
[ ( णिब ) -- ( पडिहार ) - (दंड) - ( संघट्टण ) 2 / 1] राजा के द्वारपालों के डंडों कर
संघर्षर
कौन
( हरिस हरिसिअ ) भूक 1/1
अव्यय
( रोस ) 3 / 1
( काल - अ ) 1 / 1वि 'अ' स्वार्थिक
( पहु) 6 / 1
( आसण्ण) 1 / 1 वि
( लह) व 3 / 1 सक (fagam) 2/1
[[ ( प - विरल) वि- ( दसरा ) 1 / 1] वि] ( हित्त) 2 / 1
निर्धनता
शरीर के लिए
दंड देना
नहीं
व्यक्ति के
स्वाभिमान का खंडन
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दूसरे के पैरों को धूल से पोले रंगवालो
सेवकरूपी नदो
असुन्दर
मानो
वर्षाऋतु को शोभा को हरने
चाली
सहता है (सहेमा )
हाथ से छाती पर महार
कौन
देखता है (देखे)
बार-बार
भौंहों की सिकुड़न का स्थान
क्या
प्रसन्न हुअर
क्या
क्रोध से
काला
राजा के
समीप
पाता है / प्राप्त होता है
ढोठता, निर्लज्जता को
बहुत थोड़ा दर्शन करनेवाला स्नेहरहितता को
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