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पाठ-5
पउमचरिउ
सन्धि-83
83.2
9.
एत्तडउ
इतना
दोसु
दोष
पर रहुवइ
किन्तु रघुपति
कि
परमेसरि
परमेश्वरी
साहिं
घरे
(एत्त+अडअ) 1/1 वि (दोस) 1/I अव्यय (रहुवइ) 8/1 अव्यय अव्यय (परमेसरी) 1/1 • अव्यय (घर)7/1 अव्यय (पमाय) विधि 2/1 अक (लोय) 6/2 (छन्द) 3/1 (आण+एवि) संकृ (का) 1/1 सवि (परिक्खा ) 2/1 (कर) विधि 2/1 सक
नहीं घर में नहीं भटके
पमाहि लोयहँ छन्देरण आणेवि कावि परिक्ख करे
लोगों के छल से जानकर, समझकर कोई भी परीक्षा करें
83.3
1.
तं णिसुणेवि चवड रहुरगन्वणु जाणमि सोयहे तरराउ सइत्तणु
(त) 2/1 स (णिसुण+एवि) संकृ (चव) व 3/1 सक (रहुणन्दण) 1/1 (जाण) व 1/1 सक (सीया) 6/1 अव्यय (सइत्तण) 2/1
उसको सुनकर कहता है (कहा) रघुनन्दन जानता हूँ सीता के सम्बन्धक परस्र्ष सतीत्त्व को
2. जागमि
जिह
(जाण) व 1/1 सक अव्यय
जानता हूँ जिस प्रकार
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
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