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4. अण्णु
अन्य भी पाप-कर्म का उत्पादक
दुक्किय-काम जपेरउ
(अण्ण) 1/1 दि मव्यय 1(दुक्किय)- (कम्म) - (जणेरअ) 1/1 वि 'अ' स्वाधिक] (गरजब) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक [(पाव)-(भार) 1/1] (ज) 6/1 स (केरअ) 111
गरप्राउ
पाव-भाव
बहुत भारी पाप का बोझ जिसके सम्बन्धार्थक परसर्य
7. सव्वंसह
वि सहेवि
भी
सक्कड़ अहो अगाउ भणन्ति
(सव्वंसहा) 1/1 अव्यय (सह+एवि) हेकृ अव्यय (सक्क) व 3/1 अक अव्यय (अण्णाअ) 2/1 (मरण→(स्त्री)भणन्ती) ककृ 1/1 अव्यय (थक्क) व 3/1 अक
सहने के लिए नहीं समर्थ होतो है पादपूरक अन्याय को कहती हुई नहीं शकती है
थक्कइ
काँपती है नदी क्यों
बेवह वाहिरिण कि मई सोसहि धाहावड़ खज्जन्ती ओसहि
मुझको
(वेव) ब 3/1 बक (बाहिणी) 1/1 अव्यय (अम्ह) 2/1 स (सोस) व 2/1 सक (धाहाव) व 3/1 अक (खज्ज→खज्जन्त→खज्जन्ती) व 111 (ओसहि) 1/1
सुखाते हो हाहाकार मचाती है खाई जाती हुई औषधि
7. छिज्जमार
काटो जाती हुई
वरणसइ उग्घोसह कइय
(छिज्ज→छिज्जमाण→(स्त्री)छिज्जमाणा) वक कर्म 1/1 (वणसइ) 1/1 (उग्घोस) व 3/1 सक अव्यय (मरण) 1/1 (णिर+आस-णिरास) 61 वि (हो) अवि 3/1 अक
वनस्पति घोषणा करती है कब मरण दुष्ट चित्तवाले कर होगा
मरणु
णिरासहो होसइ
8.
पवणु
(पवण) 1/1
पवन
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
[
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